Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपकानयुक्तिश्च अ० ३ सू ११ नामकर्मणो द्विचत्वारिंशद्भेदनिरूपणम् ३९५ दुरभिगन्धभेदात् । एवं तिक्तकटुकषाया-ऽम्लमधुरनामभेदात्, रसनाम पञ्चविधम् । स्पर्शनाम खलु
औदारिकादिषु शरीरेषु यस्य कर्मण उदयात् कर्कशादिः स्पर्शविशेषो भवति, तदुच्यते । तच्चाष्टविधम् कर्कश-मृदु-गुरु-लघु-शीतो-ष्ण-स्निग्ध-रूक्षभेदात्.।
अगुरु-लघुपरिणामनियामकमगुरुलघुनाम व्यपदिश्यते, गुरुत्व-लघुत्व-गुरुलघुत्वपरिणामत्रयनिषेधकमगुरुलघुनामा-ऽवसेयम् । तथाच यस्य कर्मण उदयात् सर्वजीवानां कुञादीनां निजशरीराणि न गुरूणि-नापि लघूनि स्वतो भवन्ति, किन्तु-अगुरुलघुपरिणामेवा-ऽवरुन्धन्ति, तत्कर्म अगुरुलघुशब्देन व्यपदिश्यते, सर्वद्रव्याण्येव स्थित्यादिनाऽनेकेन स्वभावेन परिणमन्ते, तत्राऽगुरुलघुपरिणामस्य नियामकं तावद् अगुरुलघुनामवर्तते ।।
शरीराङ्गोपाङ्गानां पूर्वोक्तानां यस्य कर्मण उदयात् परैरनेकवारमुपधातः क्रियते, तदुपधातनाम. । परत्रासप्रतिघातादिजनकं पराधातनाम, यस्य कर्मण उदयात् कश्चिद्विपश्चिद् दर्शनमात्रेणैवौजस्वीवाक्चातुर्येणा-ऽन्यां सभामुपगतः सभ्यानामपि त्रासमुत्पादयति परप्रतिभाप्रतिघातं वा करोतितत्पराघातनामव्यपदिश्यते । नाम कर्म, पीतवर्ण नाम कर्म, शुक्ल वर्ण नाम कर्म ।
गन्ध नाम कर्म के दो भेद हैं-सुरभिगंधनाम कर्म और दुरभिगंध नाम कर्म ।
रसनाम कर्म के पाँच भेद हैं-तिक्तरसनाम कर्म, कटुकरस नाम कर्म, कषायरस नाम कर्म, अम्लरस नाम कर्म और मधुरसनाम कर्म ।
स्पर्शनाम कर्म आठ प्रकार का है-कर्कशस्पर्श नामकर्म, मृदुस्पर्शनामकर्म, गुरुस्पर्श नाम कर्म, लघुस्पर्श नाम कर्म, शीतस्पर्श नाम कर्म, उष्णस्पर्श नाम कर्म, स्निग्धस्पर्श नाम कर्म और रूक्षस्पर्श नाम कर्म ।
ये वर्ण-गंध-रस-स्पर्श नामक नामकर्म शरीर में अमुक-अमुक प्रकार के वर्ण गन्ध आदि को उत्पन्न करते हैं।
___ अगुरु लघु नाम कर्म वह है जो शरीर की अगुरु लघुता का नियामक होता है। गुरुता, लघुता और गुरु-लघुता, इन तीन प्रकार के परिणामों का निषेधक जो परिणाम है, वह अगुरुलघु कहलाता है। अभिप्राय यह है कि जिस कर्म के ऊदय से सब जीवों के शरीर न अति गुरु होते हैं, न अति लघु होते हैं, किन्तु अगुरुलघु परिणाम वाले होते हैं, वह अगुरुलघु नाम कर्म कहलाता है। सब द्रव्य स्थिति आदि अनेकस्वभावों से परिणत होते हैं। उनमें से अगुरु लघु परिणाम का नियामक अगुरु लघु नाम कर्म है।
जिस नाम कर्म के उदय से अपने ही शरीर के अवयव आपको ही कष्टदायक होते हैं, वह उपघात नाम कर्म है। दूसरे को त्रास या प्रतिघात आदि उत्पन्न करने वाला पराघात नामकर्म है। जिस कर्म के उदय से कोई विद्वान् दर्शनमात्र से ओजस्वी प्रतीत
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧