Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ.५ सू. २९ भरतादिषु मनुष्याणामुपभोगादिनिरूपणम् ६६५ मनुष्या सदा सुषमामुत्तमर्द्धि प्राप्य प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति,तथथा-हरिवर्षेचैव, रम्यकवर्षेचैब जम्बूद्वीपे द्वयोर्वर्षयोर्मनुष्या सदा सुषमदुष्पमामुत्तमर्द्धिम्प्राप्य प्रत्यनुभवम्तो विहरन्ति, तद्यथा-हैमवतेचैव,हैरण्यवतेचैव । जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोः क्षेत्रयोः मनुष्याः सदा दुष्षमसुषमामुत्तमर्द्धि प्राप्य प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति, तद्यथा-पूर्वविदेहे चैव, अपरविदेहे चैव ।
जम्बूद्वीपे द्वीपे द्वयोवर्षयोर्मनुष्याः षविधमपि कालं प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति, तद्यथा-भरतेचैव, ऐरवते चैव इति ।
___ व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवतीसूत्रे ५-शतके १ उद्देशके चोक्तम्- 'जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स पुरथिम-पच्चत्थिमेण वि-णेवत्थि ओसप्पिणी, णेवत्थि उस्सप्पिणी, अवहिए णं तत्थ काले पण्णत्ते-” इति जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरस्य पर्वतस्य पौरस्त्यपश्चिमे नाऽपि नैवास्त्यवसर्पिणी, नैवास्ति-उत्सर्पिणी, अवस्थितः खलु तत्र कालः प्रज्ञप्तः-', इति ॥२९॥
__मूलसूत्रम्- "हिमवयाइ उत्तरकुरांतेसु दाहिणोत्तरेसु एगदुति पलियोबमहिइया, विदेहेसु य संखेज्जकाला-" ॥३०॥
छाया-"हेमवताद्युत्तरकुर्वन्तेषु दक्षिणोत्तरेषु एकद्वित्रिपल्योपमस्थितिकाः विदेहयोश्चसंख्येयकाला:-" ॥ ३०॥ हरिवर्ष और रम्यक वर्ष में मनुष्य सदा सुषमा रूप उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका उपभोग करते हुए रहते हैं। जम्बूद्वीप नामक द्वीप में दो वर्षों में अर्थात् हैमवत और हैरण्यवत नामक क्षेत्रों में मनुष्य सदा सुषमदुष्षम रूप उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका उपभोग करते रहते हैं । जम्बूद्वीप नामक द्वीप में दो क्षेत्रों में अर्थात् पूर्वविदेह और अपर विदेह में मनुष्य सदैव दुष्पमसुषम रूप उत्तम ऋद्धि को प्राप्त करके उसका परिभोग करते हुए विचरते हैं।
जम्बूद्वीप नामक द्वीप में दो क्षेत्रों में मनुष्य छहों प्रकार के काल का अनुभव करते हैं। वे दो क्षेत्र हैं-भरत और ऐरवत ।
भगवती सूत्र के पाँचवें शतक में, प्रथम उद्देशक में भी कहा है-जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सुमेरु पर्वत से पूर्व और पश्चिम में न उत्सर्पिणीकाल होता है और न अवसर्पिणी काल ही होता है वहाँ काल सदैव अवस्थित अर्थात् एक सा रहता है ॥२९॥
___ 'हिमबयाइ उत्तरकुरांतेमुं' इत्यादि । हैमवत क्षेत्र से लेकर उत्तरकुरु तक दक्षिण और उत्तर में मनुष्य एक, दो, तीन पल्योपम की स्थिति वाले तथा दोनों विदेह क्षेत्रों में संख्यात काल की आयु वाले होते हैं ॥३०॥
सूत्रार्थ-'हिमवयाइ उत्तरकुरांतेसु' इत्यादि ।
हैमवतक्षेत्र से लेकर उत्तरकुरु तक दक्षिण और उत्तर में एक, दो, तीन, पल्योपम की स्थिति वाले तथा दोनों विदेह क्षेत्रों में संख्यातकाल की आयु वाले होते हैं ॥३०॥
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧