Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू० ३२ पुष्कराधे भरतादीनां द्विरावृत्तत्त्वे कारणनिरूपणम् ६७३
तत्त्वार्थनियुक्तिः--पूर्व तावत् धातकीखण्डे पुष्करार्धे च द्वौ द्वौ भरतादिवर्षी हिमवदादिवर्षधरपर्वतौ च प्ररूपितौ, तत्र सम्पूर्णपुष्करद्वीपमनुक्त्वा पुष्करार्धे एव तेषां द्विरावृत्तत्वाभिधाने कारणमाह- "माणुसुत्तराओ पुव्वं मणुआ ते दुविहा आरिया-मिलक्खूय-" इति ।
___ मानुषोत्तरात् पुष्करद्वीपमध्यभागवर्ति मानुषोत्तरनामशैलात् पूर्वमेव-प्रागेव मनुष्याः सन्ति, न तु-तस्य पुष्करद्वीपस्य बहिरर्धे, तथाच पुष्करद्वीपबहुमध्यभागवर्ती वलयवृत्तो मानुषोत्तरो नाम शैलो वर्तते तेनैव मानुषोत्तरशैलेन पुष्करद्वीपस्य विभक्तार्थत्वात् पुष्करार्धसंज्ञा जाता । तस्मात् खलु मानुषोत्तरशैलात्प्रागेव पुष्करार्धपर्यन्ते मनुष्याः सन्ति न ततो बहिरर्धे, न वा-ततो बहिः पूर्वोक्त भरतादि क्षेत्र पर्वतविभागो वर्तते चारणमुनिः मनुष्यक्षेत्रतो नन्दीश्वररुचकवरद्वीपपर्यन्तं गच्छति । नद्योऽपि न बहिर्भागे प्रवहन्ति ।
____ अपितु -मानुषोत्तरपर्वतमाश्रित्य तिष्ठन्ति मानवक्षेत्रं त्रसाश्चापि न वहिर्गच्छन्ति यदा पुनः-- खलु मानुषोत्तरपर्वताद् बहिर्भागे मृतो जीव--स्तिर्यग्-देवो वा मनुष्यक्षेत्रमागच्छति, तदा मानवविग्रहगत्यानुपूर्व्या समागच्छन् मानुषोत्तराद् बहिर्भागेऽपि मनुष्योऽस्तीति व्यपदिश्यते एवम्- दण्ड कपाटहैं अतः पुष्करद्वीप के पूर्वार्ध में ही मनुष्य होते हैं, आगे नहीं । वे मनुष्य दो प्रकार के होते हैं--आर्य और म्लेच्छ ॥३२॥
तत्त्वार्थनियुक्ति-धानकीखण्ड और पुष्करार्ध में भरत आदि क्षेत्र तथा हिमवन्त आदि पर्वत दो-दो हैं, यह पहले बतलाया जा चुका है, मगर दो-दो की संख्या पुष्कर द्वीप में न कहकर पुष्करार्ध में कही है । इसका क्या कारण है ? सो कहते हैं
पुष्करद्वीप के मध्य में स्थित मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले ही मनुष्यों का निवास है। उसके आगे के अर्धभाग में मनुष्य नहीं होते और न उससे आगे के अन्य किसी द्वीप में ही मनुष्य होते हैं । तात्पर्य यह है कि पुष्कर द्वीप के बीचों बीच, वलय के आकार का एक पर्वत है जो मानुषोत्तर पर्वत कहलाता है । वह पर्वत पुष्कर द्वीप को दो भागों में विभक्त कर देता है। इस कारण उसका एक भाग पुष्कराध कहा जाता है । इस प्रकार उस मानुषोत्तर पर्वत से पहले-पहले ही पुष्करार्ध तक मनुष्य हैं, उससे आगे के आधे भाग में नहीं । उस अगले भाग में पूर्वोक्त भरत आदि क्षेत्रों एवं पर्वतों का विभाग भी नहीं है। चारण मुनि मनुष्य क्षेत्र से बाहर नन्दी प्रवर और रुचकवर द्वीप तक जाते हैं ऐसा भगवती सूत्र शत. २० उद्देशक ९ नौ में कहा है। वहाँ नदियाँ भी प्रवाहित नहीं होती । मनुष्य क्षेत्र के त्रस जीव भी पुष्करार्ध से आगे नहीं जाते । किन्तु जब मानुषोत्तर पर्वत के आगे के किसी द्वीप अथवा समुद्र में मरा हुआ जीव-तिर्यच या देव, मनुष्य क्षेत्र में जल लेने के लिए आता है और मनुष्य-पर्याय में उत्पन्न होने वाला होता है, तब मनुष्यगत्यानुपूर्वी से आता हुआ वह जोव, मनुष्य की आयु का उदय हो जाने के कारण मनुष्य कहलाता है । अतएव विग्रह
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧