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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ५ सू. ३४ कर्मभूमिसु मनुष्यादीनामायुः प्रमाणम् ६७९
तत्र-पूर्वकोट्यायुर्मनुष्यो मृत्वा पुनः पुनः पूर्वकोट्यायुरेव मनुष्यः सप्तवारं प्रादुर्भवति अष्टमभवे पुनर्देवकुरूत्तरकुरुषु समुत्पद्यते पश्चात् देवलोकं गच्छति तिर्यग्योनिजानाञ्च-उत्कृष्टजघन्येभवे स्थिती त्रिपल्योपमान्तमुहर्ते संक्षेपेणाऽवगन्तव्ये । उक्तञ्चोत्तराऽध्ययने ३६-अध्ययने ११८गाथायाम्- “पलिओवमा उ तिण्णिय' उक्कोसेण विगाहिया आउट्टिईमणुस्साणं' अंतोमुहुर्त जहन्निया--॥१॥ इति " पल्योपमास्तु तिस्रश्च-उत्कृष्टेन व्याख्याताः
आयुःस्थितिर्मनुष्याणामन्तर्मुहूर्तं जधन्यिका-" इति ॥ प्रज्ञापनायां ४-पदेचोक्तस्-"मणुस्सणं भंते- ! केबइकालं ठिई पण्णत्ता-! गोयमा-! जहण्णेणं अंतोमुहृतं-उक्को सेणं तिण्णि पलिओवमाई...'' इति मनुष्याणां भदन्त ! कियन्तंकालं स्थितिः प्रज्ञप्ता- गौतम- ! जघन्येना-ऽन्तर्मुहूर्तम् ,उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि-" इति । समवायाङ्गे ३ समयाये चोक्तम् ---"असंखिज्जवासाउय सन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणियाणंउक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता-'' इति । असंख्येयवर्षायुष्कसंज्ञिपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानामुत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता--इति. ।
पुनरुत्तराध्ययने ३६-अध्ययने १३८ गाथायाञ्चोक्तम् – “पलिओवमाइं तिण्णि उ उक्कोसेणवियाहिया-आउहिई थलयराणं अंतोमुहुत्तं जहण्णिया-" ॥ इति ।
"पल्योपमानि-त्रीणितु-उत्कृष्टेन व्याख्याता । आयुःस्थितिःस्थलचराणा-मन्तर्मुहूर्त जघन्यिका--॥ १ ॥ इति ।"
मनुष्य की उत्कृष्ट भवस्थिति तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की है, उत्कृष्ट कायस्थिति सात-आठ भवग्रहण प्रमाण समझना चाहिये।
यदि करोड़ पूर्व आयु वाला मनुष्य मरकर करोड़ पूर्व की आयुवाले मनुष्य के रूप में पुनः पुनः उत्पन्न हो तो लगातार सात वार ही होता है। अठवीं वार देवकुरु-उत्तरकुरु में उत्पन्न होता है और तत्पश्चात् देवलोक में गमन करता है।
तिर्थचों की उत्कृष्ट भवस्थिति तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की समझना चाहिये उत्तराध्ययनसूत्र के अध्ययन ३६ की गाथा १९८ मे कहा हैमनुष्यों को उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की कही गई है,
प्रज्ञापनासूत्र के चौथे पद में कहा गया है-'भगवन् ! मनुष्यों की स्थिति कितने काल को कही गई है ? (उत्तर) गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त की उत्कृष्ट तीन पल्योपम की। समवायांग सूत्र के तीसरे समवाय में भी कहा गया-'असंख्यात वर्ष आयु वाले संज्ञी पंचेन्द्रिय तियेचों की उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की कही है।
उत्तराध्ययन के ३६ वें अध्ययन में भी कहा है- स्थलचर तिर्यचों की उत्कृष्ट आयु तीन पल्योपम की और जघन्य अन्तर्मुहूर्त की कहो गई है।'
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧