Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ५ सू. २९
तदादौ मनुष्या महाविदेहवर्ष मनुष्यतुल्याः हानौ सत्यां दुष्षमा भवति, साचैकविंशति,
भरतादिषु मनुष्याणामुपभोगादिनिरूपणम् ६६३ पञ्चशतधनुः प्रमाणा भवन्ति - ४ । ततः क्रमेण सहस्रवर्षप्रमाणा भवन्ति, मनुष्याः सप्तहस्त प्रमाणाः सपादशतवर्षायुष्का भवन्ति - ५ ततः क्रमेण हानौ सत्यां दुष्षमदुष्षमा भवति, साचापि एकविंशति सहस्रवर्षप्रमाणाः मनुष्या एकहस्तप्रमाणा विंशतिवर्षायुष्का भवन्ति - ६
एवमुत्सर्पिण्यपि अवसर्पिणी वैपरीत्यक्रमेणा - ऽवगन्तव्या । तत्र प्रथमः एकविंशतिवर्षसहस्रप्रमाणो दुष्षमदुष्षमानाम उत्सर्पिणी कालो भवति - १ ततो दुष्षमा नाम एकविंशतिवर्षसहस्रप्रमाणो द्वितीय उत्सर्पिणीकालो भवति - २ ततो दुष्षमसुषमा नाम - तृतीयउत्सर्पिणी कालो द्वारिंशत्सहस्रवर्षोन एककोटी कोटी सागरोपमप्रमाणो भवति - ३ ततश्च सुषम दुष्षमा नाम चतुर्थ उत्सर्पिणी कालो द्विगुणकोटी कोटी सागरोपमप्रमाणो भवति - ४ ततः सुषमानाम पञ्चमः उत्सर्पिणी कालस्त्रिकोटी कोटी सागरोपमप्रमाणो भवति - ५ ततश्च - सुषम सुषमानामषष्ठ उत्सर्पिणीकालश्चतुः कोटी कोटी सागरोपमप्रमाणो भवति - ६
तत्रोत्सर्पिण्या: प्रथम कालस्याssaौ षोडशवर्षायुष्का मनुष्या
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एकहस्तशरीर प्रमाणा
पाँचसौ धनुष की अवगाहना वाले होते हैं । तदनन्तर हानि होते-होते उक्त समय पूर्ण होने पर पांचवां आरा दुष्षमा आरम्भ होता है । उसकी कालमर्यादा इक्कीस हजार वर्ष की है । उसके आरम्भ में मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई सात हाथ की और आयु सवा सौ वर्ष की होती है । अनुक्रम से वह आरा समाप्त हो जाता है और दुष्षम - दुष्षम नामक छठा आरा आरम्भ होता है । वह भी इक्कीस हजार वर्ष का होता है । उसमें मनुष्यों की अवगाहना एक हाथ की और आयु बीस वर्ष की रह जाती है ।
उत्सर्पिणी काल भी इसी प्रकार समझना चाहिए, परन्तु उसके आरों का क्रम विपरीत होता है प्रथम आरा इक्कीस हजार वर्ष का होता हैं, जिसका नाम दुष्षम - दुष्षम है । उसके पश्चात् उत्सर्पिणी का दूसरा आरा दुष्षम आता है उसका कालप्रमाण भी इक्कीस हजार वर्ष है । तदनन्तर दुष्षम सुषम नामक तीसरा आरा चालू होता है । जो बयालीस हजार वर्ष कम एक कोड़ा - कोड़ो सागरोपम का होता है । उसके बाद चौथा आरा दो कोड़ा - कोड़ी सागरोपम का आता है जिसका नाम सुषमदुष्षम है। फिर पाँचवाँ सुषमा नामक तीन कोड़ा - कोड़ी सागरोपम का आरा प्रारम्भ होता है अन्त मे सुषमसुषम नामक छठा आरा होता है जो चार कोड़ा - कोड़ी सागरोपम का होता है ।
उत्सर्पिणी काल के प्रथम आरे की आदि में मनुष्यों की आयु सोलह वर्ष की होती है । और उनका शरीर एक हाथ का होता है । उत्सर्पिणी के दूसरे आरे की आदि में मनुष्यों की आयु बोस वर्ष की शरीर का प्रमाण साढ़े तीन हाथ का होता हैं । उत्सर्पिणी
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧