Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्चअ० ४ सू. १६
देवमेदनिरूपणम् ४९१ जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीवसमुदाणं मज्झे खुड्डुलए पण्णत्ते, तेणं कालेणं तेणं समएणं छदेवामहिइढिया जंबुद्दीवे दीवे मंदरपव्वए मंदरचूलियं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ताणंचिठेज्जा, अहेणं चत्तारि दिसाकुमारी महयरियाओ चत्तारि बलिपिंडे गहाय जंबुद्दीवस्स दीवस्स चउसु वि दारेसु बहियाभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिडे जमगसमगं बहियाभिमुहे पवाहेज्जा, पभू णं गोयमा-! तओ एगमेगे देवे ते चत्तारि वि बलिपिंडे धरणितलमसम्पत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए, तेणं गोयमा ! उक्किट्ठाए जाव देवगतीए एगे पुरत्थाभिमुहे, पयाते, एवं-छस्सु वि दिसासु पयाता, तेणं कालेणं तेणं समएणं वाससहस्साउए दारए पयाते, तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो पहीणा भवंति, णो चेवणं ते देवा लोयंते संपाउणंति, तए णं तम्स दारगस्स आउए पहोणे भवइ, णो चेव णं ते देवा लोयंतं संपाउणंति, तएणं तस्स दारगस्स अद्विमिजा पहीणा भवंति, णो चेव णं ते लोयंत संपाउणंति, तएणं तस्स दारगस्ससमत्ते वि कुलवंसे पहीणे भवइ, णोचेव णं ते लोयंत संपाउणंति, तए णं तस्स दारगस्स नामगोत्तेवि पहीणे भवइ, नो चेव णं ते लोयंत संपाउणंति, तेसिं णं भंते ! देवाणं किं गए बहुए अगए बहुए ? गोयमा ! गए बहुए नो अगए बहुए, गताओ से अगए असंखिज्जइभागे,अगताओ से गए असंखेज्जगुणे, एवं महालए गोयमा ! लोए पण्णत्ते-, इति ।
कियन्महान् खलु भदन्त ! लोकः प्रज्ञप्तः ? गौतम ! अयञ्च खलु जम्बूद्वीपो द्वीपः सर्वद्वीपसमुद्राणां मध्ये क्षुल्लकः प्रज्ञप्तः, तस्मिन् काले तस्मिन् समये खलु षडूदेवा महर्द्धिकाः जम्बूद्वीपे द्वीपे मन्दरपर्वते मन्दर चूलिकां सर्वतः समन्तात् संपरिक्षिप्य तिष्ठेयुः, अथ खलु चतस्रो दिक्कुमार्यो महत्तरिकाश्चतुरो बलिपिण्डान् गृहीत्वा जम्बूद्वीपस्य द्वीपस्य चतुर्वपि द्वारेषु बहिरभिमुख्यः स्थित्वा तान् चतुरो बलिपिण्डान् युगपद् बहिरभिमुखान् प्रवाहयेयुः ।।
प्रभुगौतम ! तत एकैको देवस्तान् चतुरोऽपि बलिपिण्डान् धरणितलमसंप्राप्तान् क्षिप्रमेव प्रतिसंहर्तुम् ? ते गौतम ! उत्कृष्टया यावद् देवगत्या एको देवः पूर्वाभिमुखः प्रयातः,
देवों की विशिष्ट गति का वर्णन आगमों में किया गया है। व्याख्याप्रज्ञप्तिभगवतीसूत्र के ग्यारहवें शतक के दसवें उद्देशक में कहा है
प्रश्न---भगवन् ! लोक कितना बड़ा है ?
उत्तर ---गौतम ! यह जम्बूद्वीप नामक द्वीप समस्त द्वीपों और समुद्रों के अन्दर है और सब से छोटा है । किसी काल और किसी समय में छह महान् ऋद्धि के धारक देव जम्बूद्वीप में, मेरुपर्वत की चोटी को सब ओर से घेर कर खड़े हों। इधर चार बड़ो दिशाकुमारियाँ चार बलिपिण्डों को ग्रहण करके जम्बूद्वीप के चारों द्वारों पर बाहर की ओर मुख करके खड़ी होकर उन चारों बलिपिण्डों को एक साथ छोड़ दें। तो हे गौतम ! उन छह देवों में से एक-एक देव उन चारों बलिपिण्डों को धरती पर प्राप्त होने से पहले ही,
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧