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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ. ५ सू. १९
वर्षधर पर्वतानां वर्णादिनिरूपणम् ६३९
जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तौ चोक्तम् – १५ – सूत्रे - “विभयमाणे - " इति विभजमान इति । तदग्रे च तत्रैवोक्तम् - ७२ सूत्रे “पाईणपडीणायए -" इति प्राचीन - प्रतीचीनायता - इति ॥ २३॥ मूलसूत्रम्- - " ते कणग रयण तवणिज्ज वेरुलिय रूप्प हेममयाइया - " ॥२४॥
छाया --" ते कनकरत्नतपनीयवैडूर्य रूप्यरत्नमयादिकाः ॥२४॥ तत्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे जम्बूद्वीपस्थ भरतवर्षादि सप्तक्षेत्रविभाजकतया क्षुद्रहिमवदादयः षड्वर्षधरपर्वताः प्ररूपिताः सम्प्रति - तेषां षण्णामपि हिमवदादीनां वर्णविशेषसंस्थानपद्महूदादि षड्हृद पुष्कर विष्कम्भादि प्रतिपत्यर्थमाह " ते कणगरयण" इत्यादि । ते खलु क्षुद्र हिमवद् निषेध - नील रुक्मि–शिखरिनामानः षड्वर्षधरपर्वताः क्रमशः - कनक, रत्न तपनीय, वैडूर्य रूप्य, रत्नमयादिकाः सन्ति ।
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तथा च-क्षुद्रहिमवान् खलु कनकमयो हेममयः चीनपट्टवर्णो वर्तते १ महाहिमवान् - रत्नमयः शुक्लवर्णः, २ निषधपर्वतस्तु - तपनीयमयः तरुणरविवर्णः, ३ नीलवान् पर्वतः खलु वैडूर्यमयो मयूरग्रीवा निभः, ४ रुक्मीपर्वतश्च - रूप्यमयो रजतमयः शुक्लवर्णः, शिखरीपर्वतस्तु - हेममयः चीनपट्टवर्णो विद्यते, ६
कनक - रत्न- तपनीय - वैर्य रूप्यहेममयाः प्रकृतेर्विकारः अवयवो वेत्यर्थे मयट् प्रत्ययः । आदिपदेन–मणिविचित्रपार्खाः उपरि - मध्ये - मूले च तुल्यविस्ताराः तदुपरि - वर्तमानाः पद्म महाजम्बूद्वीपप्रज्ञाप्ति सूत्र १५ में कहा है- विभजमान ।' वहीं आगे सूत्र ७२ में कहा है - ' (वे वर्षधर पर्वत) पूर्व - पश्चिम में लम्बे हैं ||२३||
' ते कणगरयण' इत्यादि सू० २४
सूत्रार्थ - वे पर्वत क्रमशः कनक - रत्न - तपनीय - वैडूर्य- - रुप्य - हेममय आदि हैं ||२४|| तत्वार्थदीपिका -जम्बूद्वीप में स्थित भरतवर्ष आदि सात क्षेत्रों को विभक्त करने वाले क्षुद्रहिमवन्त आदि छह वर्षधर पर्वतों का पूर्वसूत्र में प्ररूपण किया गया है; अब उन वर्षधर पर्वतों के रंग, आकार उन पर बने हुए पद्महूद आदि छह हृद, उनके अन्दर के पुष्कर आदि का बिस्तार वगैरह बतलाने के लिए कहते हैंवे क्षुद्र हिमवन्त, महाहिमवन्त, निषध, नील, रुक्मि और शिखरी नामक छह वर्ष धर पर्वत अनुक्रम से कनक, रत्न तपनीय, वैड्र्य, रुप्य और रत्नमय आदि
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(१) क्षुद्रहिमवन्त पर्वत स्वर्णमय है, चीनपट्ट के वर्णवाला है । (२) महाहिवन्त पर्वत रत्नमय-शुक्क वर्ण का है (३) निषध पर्वत तपनीयमय - मध्याइन कालिक सूर्य जैसे वर्णका है । (४) नीलवान् पर्वत वैडूर्यमय - मयूर की गर्दन के समान है । (५) रुक्मी पर्वत रजतमय - सफेद रंग का है और (६) शिखरी पर्वत हेममय - चीन- पट्ट के रंग का है ।
कनक - रत्न -- तपनीय वैडूर्य रूप्य - हेममयाः यहाँ प्रकृति के विकार या अवयव अर्थ प्रत्यय हुआ है। सूत्र में जो 'आदि' पद का प्रयोग किया गया है, उससे इतना और
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧