Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तत्त्वार्थसूत्रे एकश्चैकोन विंशतिभागयोजनरूपश्च ८४२११. विद्यते ।
नीलपर्वतविष्कम्भः पुन-चत्वारिंशदधिका-ऽष्टशतोत्तरषोडशसहस्रयोजनप्रमाणः येकोनविंशतिभागयोजनरूपश्च १६८४२ २. वर्तते इति भावः ।
एवं-नीलपर्वतोपरि केसरिहदस्तावत्-चतुःसहस्रयोजनविष्कम्भो वर्तते, केसरिहदमध्यभागेच चतुर्योजनाऽऽयामविष्कम्भं पुष्करमेकं विलसति-। रुक्मिपर्वतोपरिच-पुण्डरीक नामहृदो द्विगुणविष्कम्भो विशालो दशयोजनाऽवगाहश्च वर्तते । पुण्डरीकहदमध्यभागेच-पूर्वोक्त पुष्करापेक्षया द्विगुणायामविष्कम्भं पुष्करमेकं वर्तते । एवं शिखरिपर्वतोपरिच-महापुण्डरीक नामहृद स्तद् द्विगुणविस्तारो दशयोजना-ऽवगाहश्च विलसति ।
तथाच-महाविदेहवर्षस्य-चतुरशीत्यधिक षट्शतोत्तरत्रयस्त्रिंशत्सहस्रयोजनप्रमाण चतुरेकोनविंशतिभागयोजनविष्कम्भः ३३६८४ - प्रमाणतया तदर्घविष्कम्भस्तावद् नीलपर्वतो वर्तते। नीलपर्वताविष्कम्भो रम्यकवर्षो वर्तते, रम्यकवर्षार्धविष्कम्भो रुक्मिपर्वतो विद्यते, रुक्मिपर्वतार्ध विष्कम्भो हैरण्यवतवर्षोऽस्ति । हैरण्यवतवर्षाविष्कम्भश्च शिखरिपर्वतो भवति, शिखरिपर्वतार्ध विष्कम्भः पुनरैरवतवर्षो भवतीति फलितम् ।
"उक्तञ्च स्थानाङ्गे २ स्थाने २- उद्देशके ८७ सूत्रे-"जंबू मंदरस्स पब्बयस्सय उत्तरदाहिणेणं दो वासहरपव्वया बहुसमतुल्ला अविसेसमणाणत्ता अन्नमन्नं णातिरुक्मि पर्वत ४२१०१० योजन विस्तृत है और रम्यकक्षेत्र का विस्तार ८४२१ - योजन का
है । नीलपर्वत का विस्तार १६८४२ -२ योजन का है ।
इसी प्रकार नील पर्वत के ऊपर जो केसरी नामक हृद है, उसका विष्कंभ दो हजार योजन का है । केसरी हूद में चार योजन की लम्बाई-चौड़ाई वाला एक पुष्कर शोभायमान है। रुक्मी नामक पर्वत के ऊपर पुण्डरीक हद है जो उससे आधा विस्तार वाला है, विशाल है
और दस योजन के अवगाह वाला है । पुण्डरीक हृद के मध्यभाग में पूर्वोक्त पुष्कर की अपेक्षा से आधा लम्वा-चौड़ा एक पुष्कर है । इसी प्रकार शिखरी पर्वत के ऊपर महापुण्डरीक नामक हृद है, जिस का विस्तार उससे भी आधा है और अवगाह दस योजन का है ।
इस प्रकार तेतीस हजार छह सौ चौरासी योजन तथा उन्नासिया चार भाग महाविदेह क्षेत्र का विस्तार है । नील पर्वत का विस्तार इससे आधा है। नील पर्वत का जितना विस्तार है उससे आधा विस्तार रम्यक वर्ष का है, रम्यक वर्ष से आधा विस्तार रुक्मी पर्वत का है, रुक्मी
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧