Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
तत्वार्थ सूत्रे
यकाण्डादष्टभिः सहस्रयोजनैर्हीनम् अष्टाविंशति सहस्रयोजनप्रमाणं विद्यते इति भावः ।
तेषु क्षुद्रमन्दरेषु चतुर्षु विद्यमाने भद्रशालनन्दनवने द्वे अपि महामन्दरतुल्ये एवा-वगन्तव्ये धरणितले - भद्रशालवनम्, तदुपरि - सार्धपञ्चशतयोजनेषु नन्दनवनं विद्यते, तदुपरि पञ्चपञ्चाशत्सहस्रशतयोजनान्यारुह्य सौमनसवनं वर्तते, द्वितीयकाण्डस्य - पञ्चशतयोजनानि नन्दनवनेन परिवेष्टितानि सन्ति ।
६३८
तस्मात्-सार्धपञ्चपञ्चाशत् सहस्रयोजनानि गत्वा तत् - पञ्चशतयोजनविस्तृतमेव भव ततोऽष्टाविंशति शतसहस्रयोजनान्यारुह्य पाण्डुकवनं भवति ततः खलु चतुर्नवत्यधिक चतुःशतयोजनविस्तृतमेव भवति । एव मुपरिचाऽधस्ताच्च विष्कम्भोऽवगाहश्च महामन्दरेण तुल्य एव भवति । तथाचोपरिशिखरे यो विष्कम्भो भवति स एतेषां महामन्दरेण तुल्यः सहस्रयोजनप्रमाणो भवति अधश्च योवगाहः सोऽपि महामन्दरेण तुल्य एव सहस्रयोजनप्रमाण एषां भवति, चूलिकाचैतेषां चतुणी महामन्दरस्य चूलिकातुल्यैव प्रमाणतो बोध्या ।
उक्तञ्च–स्थानाङ्गे ६–स्थाने – “ जम्बूद्दीवे छ वासहरपव्त्रया पण्णत्ता, तं जहा चुल्लहिमवंते, महाहिमवंते, निसढे, नीलवंते, रुप्पि, सिहरी, – "जम्बूद्वीपे षड्वर्षघरपर्वताः प्रज्ञप्ताः तद्यथा क्षुल्लहिमवान्, महाहिमवान् निषधः, नीलवान् रुक्मी, शिखरी - इति । के तीसरे काण्ड से आठ हजार योजन कम होने से आईस हजार योजन प्रमाण है । चारों क्षुद्रमन्दर पर्वतों पर जो भद्रशाल और नन्दनवन हैं, बे दोनों महामंदर पर्वत के भद्रशाल और नन्दनवन के बराबर ही हैं । पृथ्वी तल पर भद्रशाल वन है । उससे पाँच सौ योजन की ऊँचाई पर नन्दनवन हैं । उससे साढ़े पचपन हजार योजन ऊपर सौमनसवन है । दूसरे काण्ड के पाँच सौ योजन नन्दनवन के द्वारा घिरे हुए हैं । अतएव साढे पचपन हजार योजन चलकर वह पाँच सौ योजन विस्तृत है | उससे आगे अट्ठाईस हजार योजन की ऊँचाई पर पाण्डुकवन है । वह चार सौ चौरानवे योजन विस्तार वाला है । इसप्रकार ऊपर और नीचे बिस्तार और अवगाह महामन्दर पर्वत के बराबर ही है । अतएव ऊपर शिखर पर जो विस्तार है, वह इनका महामंदर पर्वत के ही बराबर हैं और वह एक हजार योजन प्रमाण है । नीचे जो अवगाह है, वह भी महामंदर के ही बराबर है और वह भी महामंदर के बराबर एक हजार योजन प्रमाण ही है । चारों क्षुदमंदर पर्वतों को भूमि का महामंदर पर्वत की चूलिका के बराबर ही है ।
t
स्थानांगसूत्र के छठे स्थान में कहा है- 'जम्बुद्वीप में छह वर्षधर पर्वत कहे हैं, वे इस प्रकार हैं - चुल्ल (क्षुद्र ) हिमवन्त, महाहिमवन्त, निषध, नीलवन्त रुक्मि, शिखरी ।'
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧