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तत्त्वार्थसूत्रे
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पद्म-तिगिच्छ-केसरिपुण्डरीक-महापुण्डरीक नामानः षहदाः ।
तेषाञ्च षण्णां हृदानां तत्रत्य पुष्कराणाञ्च यथाक्रममायाम-विष्कम्भाऽवगाहाश्च गृह्यन्ते तत्र-पद्महदस्याऽऽयामो योजनसहस्नपरिमितः, विष्कम्भश्च-पञ्चशतयोजनमितः, अवगाहो निम्नता अधः प्रवेशो दशयोजनमितो वर्तते । तद् द्विगुणतद् द्विगुणादिक्रमेण महापमहूदादीनामायामविष्कम्भा बोध्याः अवगाहस्तु-सर्वेषां दशयोजनमित एवं वर्तते । सर्वेषां हृदानां मध्यवर्ति पुष्कराणाञ्चा-ऽऽयाम-विष्कम्भाः योजनादि क्रमेणोत्तरोत्तरवृद्धया अवगन्तव्याः ॥२४॥
तत्त्वार्थनियुक्ति:--पूर्वं हिमवदादीनां जम्बूद्वीपवर्तिनां षण्णां वर्षधरपर्वतानां प्ररूपणं कृतम् सम्प्रति-तेषां वर्णविशेषसंस्थानाकार तत्रत्य पद्मदादि षहदपुष्करा-ऽऽयाम-विष्कम्भादिप्रतिपत्त्यर्थमाह–ते कणगरयणतवणिज्ज वेरुलिय रूप्पहेममयाइया-" ।। इति ।।
___ ते खलु-क्षुद्रहिमवदादयः षड्वर्षधरपर्वताः कनक-रत्न–तपनीय-वैडूर्य-रूप्य-हेममयाः सन्ति । तत्र-हिमवान् पर्वतः कनकमयत्वात्-चीनपट्टवर्णः, १ महाहिमवान्-खलु रत्नमयत्वात्समझ लेना चाहिए-उन पर्वतों के पार्श्वभाग मणियों से चित्र विचित्र हैं और उनका विस्तार ऊपर मध्य में तथा मूल में है।
उन छह पर्वतों के ऊपर क्रमशः पद्म, महा पद्म तिगिच्छ केसरी, पुण्डरीक और महा. पुण्डरीक नामक छह हूद हैं।
उन छहों हृदों का और उनमें स्थित पुष्करों का आयाम (लम्बाई) विष्कम (विस्तार) और अवगाह इस प्रकार है-पद्म नामक हृद (द्रह) एक हजार योजन लम्बा है, पाँच सौ योजन विस्तृत है और दस योजन अवगाह (गहरा) वाला है । अवगाह का अर्थ यहाँ निचाई है, जिसे निचला प्रदेश भी कह सकते हैं । महापन तथा तिगिच्छ हृदों का विस्तार एवं आयाम उत्तरोत्तर द्विगुणित है । अवगाह सबका दस योजन ही है । सभी हृदों के मध्य में स्थित पुष्करों का आयाम विष्कम एक योजन आदि क्रम से उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ समझना चाहिए ।
यहाँ यह ध्यान रखना चाहिए कि पद्म आदि हद तथा उनमें स्थित पुष्कर दक्षिण दिशा में द्विगुणित हैं, अर्थात् पद्महूद से महापद्महूद द्विगुण आयाम विस्तार वाला है । और महापद्म हृद से तिगिच्छ हृद दुगुना आयाम विस्तार वाला है। उसके पश्चात् उत्तर दिशा के तोनों हद और पुष्कर दक्षिण जैसे ही हैं, अर्थात् तिगिच्छ हूद के बराबर विस्तारादि वाला केसरी हृद है, महापद्म के बराबर पुण्डरीक हूद है और पद्म हूद के समान महापुण्डरीक हूद है ॥२४॥
तत्त्वार्थ नियुक्ति--इससे पूर्व जम्बूद्वीप में स्थित हिमवन्त आदि छह वर्षधर पर्वतों की प्ररूपणा की गई है । अब उन पर्वतों के वर्ण एवं आकार का तथा उनमें जो पद्म हद आदि हैं उनका और उनके पुष्करों का आयाम विष्कम्भ आदि की प्ररूणा करते हैं
वे क्षुद्रहिमवन्त आदि छह वर्षधर कनक,रत्न, तपनीय, वैडूर्य रूप्यमय और हेममय हैं। उनमें से हिमवन्त पर्वत कनकमय होने से चीनपट्ट के वर्ण का है । महाहिमवन्त रत्नमय होने से
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧