Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तत्त्वार्थसूत्रे
शर्करा प्रभायां नारकाणां या त्रिसागरोपमो -त्कृष्टा स्थिति रस्ति, सा वालुकाप्रभायां तेषां जघन्या स्थितिरवसेया । या च वालुकाप्रभायां नारकाणा मुत्कृष्टा स्थितिः सप्तसागरोपमा वर्तते, सा- पङ्कप्रभायां नारकाणां जघन्या स्थितिरस्ति । या च पङ्कप्रभायां नारकाणामुत्कृष्टा स्थिति सागरोपमा वर्तते सा धूमप्रभायां तषां जघन्या स्थिति रस्ति । या च - धूमप्रभायां - नारकाणामुत्कृष्टा स्थितिः सप्तदशसागरोपमा वर्तते सा तमःप्रभायां नारकाणां जघन्या स्थिति र्भवति । याच तमः प्रभायां नारकाणामुत्कृष्टा स्थितिः द्वाविंशतिमागरोपमा वर्तते, सा खलु-तमस्तमः प्रभायां नारकाणां जघन्या स्थिति र्भवति । रत्नप्रभायान्तु - नारकाणां दशवर्षसहस्राणि जघन्या स्थिति रवगन्तव्या ॥ १८ ॥
मूलसूत्रम् - "जंबूद्दीव लवण समुद्दाइ नामाओ असंखेज्जा दीवसमुद्दा - " ॥१९॥ छाया- - "जम्बूद्वीप लवणसमुद्रादि नामानोऽसंख्येयाः द्वीपसमुद्राः - " ॥ १९ ॥ तत्त्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे - रत्नप्रभादि सप्तपृथिवीषु नरकवासिनां नारकाणां जघन्येन स्थितिः प्ररूपिता, सम्प्रति - भूमिप्रस्तावाद जम्बूद्वीपादि द्वीपान् - लवणसमुद्रांश्च प्ररूपयितुमाह"जंबूद्दीव लवण समुद्दाइ -" इत्यादि । जम्बूद्वीपलवण समुद्रादयोऽसंख्येया द्वीपसमुद्राः सन्ति । तत्र - जम्बूद्वीपादयो द्वीपाः लवणोदधिप्रभृतयः समुद्रा चाडसंख्येयाः सन्ति ।
तद्यथा - जम्बूद्वीपो नामा द्वीप:- १ लवणोदधिनामा समुद्र:, धातकी खण्डनामा दीप:- २ कालोदधिनामा समुद्रः, पुष्करवरनामा द्वीप:- ३ पुष्करवरोदनामा समुद्रश्च, वारुणीवर नामा सागरोपम की जो उत्कृष्ट स्थिति है, वह तीन सागरोपम वालुका प्रभा में जघन्य समझनी चाहिए । वालुकाप्रभा में जो सात सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति है वही पंकप्रभा में जधन्य है । पंकप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति दस सागरोपम की है, वही धूमप्रभा में जधन्य है । धूमप्रभा में उत्कृष्ट स्थिति सतरह सागरोपम की है, वही तमः प्रभा में जधन्य स्थिति है । तमःप्रभा में नारकों की उत्कृष्ट स्थिति वाईस सागरोपम है, वही बाईस सागरोपम तमस्तमःप्रभा में जघन्य है । रत्नप्रभा में जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष की है || १८ |
सूत्रार्थ - 'जंबुद्दीवलवण' इत्यादि ॥ १९ ॥
जम्बू द्वीप आदि द्वीप और लवण आदि समुद्र असंख्यात हैं ॥१९॥
तत्त्वार्थदीपिका - पूर्व सूत्र में रत्नप्रभा आदि भूमियों के नारकों की जधन्य स्थिति की प्ररूपणा की गई, अब प्रसंगवश जम्बूद्वीप आदि द्वीपों की और लवण समुद्रों की प्ररूपणा करते हैं
जम्बूद्वीप और लवणसमुद्र आदि द्वीप और समुद्र - (१) जम्बूद्वीप नामक द्वीप, लवणोदधि नामक समुद्र, (२) कालोदधि नामक समुद्र ( ३ ) पुष्करवर नामक द्वीप,
असंख्यात हैं वे इस प्रकार
धातकी खण्ड नामक द्वीप, पुष्करवरोद नामक समुद्र, (४) वारुणी -
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧