Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ४ सू. २५ पूर्वोक्तेषु चतुर्विधेषु कति इन्द्राः भवन्तीति निरूपणम् ५२७
णवासीणं" इति सूत्रे - तेण तत्थ साणं २, तायत्तीसाणं साणं २, लोगपालाणं साणं २, अग्गमहिसणं, साणं साणंपरिमाणं, साणं २, अणीयाणं, साणं २, afterati साणं २, आयरक्खगदेवसाहस्सीणं अन्नेसिंच....कारेमाणा जाव विहरति इति ॥ २४ ॥ मूलसूत्रम् — “भवणवइ - वाणमंतराणं पाडिएक्कं दो इंदा जोइसियाणं दो वेमाणि - याणं एगेगे" सू० ॥२५॥
छाया -- "भवणपति - धानव्यन्तराणां प्रत्येकं द्वाविन्द्रौ, ज्योतिष्काणां छौ, वैमानि कानामेकः ". - सूत्र ॥२५॥
तत्वार्थदीपिका - पूर्वं तावत् भवनपति - वानव्यन्तर - ज्योतिष्कवैमानिकदेवानां यथायथं प्रत्येकं केषां कियन्त इन्द्रादयो भवन्तीति प्ररूपितम्, सम्प्रत्यसुरकुमारादिदशविधभवनपतीनां किन्नरकिम्पुरुषाद्यष्टविधवानव्यन्तराणाञ्च प्रत्येकं द्वौ - द्वाविन्द्रौ भवतः, ज्योतिष्काणां द्वौ, वैमानिकानां पुनरेकैकइन्द्रो भवतीति प्ररूपयितुमाह “भवणवइ - वाणमंतराण पाडिएक्कं बे इंदा, जोइसिया - णं दो वेमाणियाणं एगेगे' इति । भवनपति - वानव्यन्तराणाम् असुरकुमारादिदशविधभवनवासिनाम्, किन्नराद्यष्टविधवानव्यन्तराणाञ्च प्रत्येकं द्वौ - द्वाविन्द्रौ स्तः । ज्योतिष्काणां चन्द्रसूर्यग्रहनक्षत्रताराणां द्वाविन्द्रौ चन्द्र-सूर्यौस्तः । वैमानिकानान्तु - सौधर्मादीनां कल्पोपन्नकानामेकैकइन्द्रः । सणं' इस २८ वे सूत्रमें कहा है – अपने-अपने लाखों भवनावासों अपने २, हजारों सामानिक देवों का अपने २, त्रायस्त्रिक देवों का अपने २, लोकपालों का अपनी अपनी अग्रमहिषियों का अपने २, पारिषद्य देवों का अपनी २, सेनाओंका अपने २ अनीकाधिपतियों का अपने २ आत्मरक्षक देवों का तथा और भी बहुत से देवों का आधिपत्य आदि करते हुए रहते हैं | सूत्र ||२४|| सूत्रार्थ – 'भवणवइ - वाणमंतराणं पाडिएकं' इत्यादि । सूत्र ||२५||
भवनपतियों और वानव्यन्तरो की प्रत्येक जाति में दो दो इन्द्र है, ज्योतिष्कों में कुल दो इन्द्र है और वैमानिकों में (एक - एक कल्प में) एक - एक इन्द्र हैं । सूत्र ॥ २५ ॥
तत्त्वार्थदीपिका - भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों में इन्द्र आदि कितने २, प्रकार के होते है, यह बतलाया जा चुका है । अब असुरकुमार आदि दस प्रकार के भवनपतियों में तथा किन्नर किम्पुरुष आदि आठ प्रकार के वानव्यन्तरों में, प्रत्येक जाति में दो-दो इन्द्र होते है, ज्योतिष्को में जातिवाचक कुल दो इन्द्र हैं और वैमानिकों में एक-एक इन्द्र हैं यह प्रतिपादन करते हैं ।
असुरकुमार आदि दस प्रकार के भवनवासियों में और किन्नर आदि आठ प्रकार के वानव्यन्तरो में प्रत्येक जाति में दो-दो इन्द्र होते है । चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारे इन पाँच प्रकार के ज्योतिष्को में केवल जातिवाचक दो इन्द्र-चन्द्र और सूर्य होते है । सौधर्मआदि प्रत्येक वैमानिक देवों में एक-एक इन्द्र होता हैं । सौधर्मकल्प में शक इन्द्र है,
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શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧