Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ.५ सू. ६ चारित्रमोहनीयस्य षोडशकषायनवनोकषायकर्मणोबन्धहेतवः५७५
___ एवं-परमधार्मिकाणां श्रमणानां गर्हणा, धर्माभिमुखानां विघ्नकारित्वम् , देशविरतिजनान्तरायकरणम् , मधु-मद्य-मांसाविरतिगुणदर्शनम्, चारित्रगुणसन्दूषणम्, अचारित्रदर्शनम्, परस्यकषायनोकषायोदीरणञ्च, चारित्रगुणोपातकारिकषाय-नोकषायवेदनीयरूप चारित्रमोहनीयकर्मबन्धहेतवो भवन्तीति भावः ।
उक्तञ्च–व्याख्याप्रज्ञप्तौ भगवती-सूत्रे-"मोहणिज्जकम्मा सरीरप्पओगपुच्छा ? गोयमा तिव्वकोहयाए, तिव्वमायाए तिव्यमाणयाए, तिव्वलोभए, तिव्वदंसणमोहणिज्जयाए तिव्व-चारित्तमोहणिज्जाए-" इति, मोहनीयकर्म शरीरप्रयोगपृच्छा ? गौतम ! तीवक्रोधतया
-तीव्रमानतया--तीव्रमायया—तीव्रलोभतया तीव्रदर्शनमोहनोयतया तीव्रचारित्रमोहनीयानिइति-1६॥
मूलसूत्रम् - "महारंभ महापरिग्गहा-पंचिदिय-वह-मंसाहारेहि नारगाउए"-॥७॥ छाया -"महारम्भ-महापरिग्रह-पञ्चेन्द्रिय-बध-मांसाहारैर्नारकायुष्कम् ॥ ७ ॥
तत्वार्थदीपिका-पूर्वसूत्रे षोडशकषायवेदनीय-नवनोकषायवेदनीयपापकर्मणां बन्ध-- हेतवः प्ररूपिताः सम्प्रति- नारकायुष्यकर्मणो बन्धहेतून् प्ररूपयितुमाह-"महारंभमहापरिग्गह-पंचिंदियवहमंसाहारेहिं नारगाउए-" इति । कामभोग सेवन करने की अभिलाष या आदत होना, शील व्रत एवं गुण वलों को तिव्र विषयों के प्रति तीव्र अभिलाषा होना, यह सब नपुंसकवेद के बंध के कारण हैं।
तात्पर्य यह है कि परम धर्मनिष्ठ श्रमणों की निन्दा करने से, जो धर्माचरण करनेमें तत्पर हैं उनके धर्माचरण में विघ्न डालने से, देशविरत जनों के धर्मकृत्य में : अन्तराय डालने से, मधु, मांस एवं मधका त्याग करने में गुण समझने से, चारित्र गुण को दूषित करने से, कुत्सित चारित्र को सच्चरित्र समझने से और दूसरे के कषायों एवं नो कषायों कीउदीरणा करने से मोहनीय कर्म का बन्ध होता है।
भगवानसूत्र में कहा है-मोहनीय कर्म-शरीरप्रयोग के विषय में पृच्छा ? हेगौतम ! तीव क्रोध करने से, तीव्र मान करने से, तीव्र माया सेवन करने से, तीव्र लोभ करने से, तीत्र दर्शनमोहनीय से और तीव्र चारित्र मोहनीय से मोहनीय कर्म बंधता है॥६॥
सूत्रार्थ--'महारंभमहापरिग्गह' इत्यादि सूत्र ॥७॥ महारंभ, महापरिग्रह, पचेन्द्रियवध और मांसाहार से नरकायु का बन्ध होता है ॥७॥
तवार्थदीपिका-पूर्वसूत्र में सोलह कषायवेदनीय और नौ नोकषाय वेदनीय पापकर्मों के बन्धहेतु प्रतिपादन किये गये, अब नरकायु कर्म के बन्ध के कारणों की प्ररूपणा करते हैं—महान् आरंभ, महान् परिग्रह, पंचेन्द्रिय जीवों का वध और मांसाहार करने से नरकायु का बंध होता है।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧