Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
दीपिकानियुक्तिश्च अ० ४ सू० २६ भवनपत्यादि देवानां विषयसुखभोगप्रकारनिरूपणम् ५३५ लंगे कप्पे देवा रूवपरियारणा, महासुक्कसहस्सा रेसु कप्पे देवा सहपरियारणा, आणय- पाणय- आरण - अच्चुए कप्पे देवा मण परियारणा, गेवेज्ज अणुत्तरोववाइयादेवा अपरियारणा - " इति ।
कतिविधा खलु भदन्त ! प्रचारणा प्रज्ञप्ता : गौतम ! पञ्चविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा - कायप्रचारणा स्पर्शप्रचारणा रूपप्रचारणा मनःप्रचारणा भवणवासि - वानव्यन्तर - ज्योतिष्क - सौधर्मेशानेषु कल्पेषु देवाः कायप्रचारणाः, सनत्कुमार - महेन्द्रयोर्देवाः स्पर्शप्रचारणाः,
ब्रह्मलोक -लान्तकयोः कल्पयोर्देवाः रूपप्रचारणाः, महाशुक्र - सहस्रारयोः कल्पयोर्देवाः शब्दप्रचारणाः, आनत - प्राणता - sssरणा --ऽच्युतेषु देवा मनःप्रचारणाः, ग्रैवेयकानुत्तरौपपातिका देवा अप्रचारणाः इति । कल्पोपपन्नकानां - कल्पातीतानाच्च देवानां प्रवीचारविषये चोक्तम् - "वे काये बे फासे चउ रूवे तहेव चउ सदे ॥ चउरो य मणवियारा सेसा सुरबंभयारिया - ॥१॥ " धादुविहीणत्ता रेदक्खलणं ण होइ देवाणं - | संप जाय वेदस्सोदीरणाविगमे- २ ।। इति ।। " द्वौ काये द्वौ स्पर्शे - चात्वारो रूपे तथैव चत्वारः शब्दे - | चात्वारश्च मनोविचाराः - शेषाः सुरा ब्रह्मचारिणः ॥ १ ॥ “धातुविहीनात्वाद् - रेतःस्खलनं न भवति देवान् । सङ्कल्पसुखं जायते - वेदस्योदीरणाविगमे ॥ २ ॥ इति ॥ २६ ॥
प्रज्ञापना सूत्र के ३४ वें पद में प्रवीचारणा के विषय में कहा हैं।
प्रश्न- भगवन् ! प्रवीचारणा ( काम सेवन ) कितने प्रकार की कही गई है ? उत्तर---- गौतम ! पाँच प्रकार की कही गई है - कायपरिचारणा, स्पर्शपरिचारणा, रूप परिचारणा, शब्दपरिचारणा, और मनः परिचारणा । भवनवासि, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क सौधर्म तथा ईशान कल्प में देव काया से परिचारणा करते हैं; सनत्कुमार और माहेन्द्र कल्पों के देव स्पर्श से परिचारणा करते हैं, ब्रह्मलोक और लान्तक कल्पों में रूप से परिचारणा होती है, महाशुक और सहास्रार कल्पों में देव शब्द से परिचारणा करते हैं, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पो में देब मन से परिचारणा करते हैं, ग्रैवेयक और अनुत्तरोपपातिक देव परिचारणा रहित होते हैं ।" कल्पोपपन्न और कल्पातीत देवों के प्रवीचार के विषय में कहा है
दो लोकों में काय से, दो में स्पर्श से, दो में रूप से और दो में शब्द से और चार में मन के संकल्प से प्रवीचार होता है । शेष देव परिचारणा रहित होते हैं ॥ १ ॥
देवों का शरीर सात धातुओं से रहित होता है, अतएव उन का वीर्य स्खलित नहीं होता वेद की उदीरणा दूर हो जाती है तब उन्हें संकल्प - सुख उत्पन्न होता है ।। २ ।। २६ ।।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧