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तत्त्वार्थ सूत्रे
कुमाराचैत्यसुरकुमाराः - १ न गच्छन्तीति नगाः पर्वताः चन्दनादिवृक्षावा तेषु भवा नागाः-२ सुष्ठु शोभनानि पर्णानि पक्षा वा येषान्ते सुपर्णा ३
विद्योतन्ते दीप्यन्ते इति विद्युतः ४ अङ्गानि पाताललोकं विहाय क्रीडार्थमूर्ध्वमागच्छन्तीति अग्नयः - ५ उदकानि धीयन्ते एकत्री भवन्ति येषु ते उदधयः - [ ५ ] उदधिषु क्रिडायोगात् ते देवा अपि उदधिपदेन व्यपदिश्यन्ते ६ द्विर्गता आपो येषु ते द्वीपा : - तेषु द्वीपेषु क्रिडायोगाद्देवा अपि द्विपपदेनोच्यन्ते- ७दिशन्ति-वितरन्ति - अवकाशमिति दिशः, तासु - दिक्षु क्रिडायोगात् तेऽपि देवा दिक्पदेन व्यपदिश्यन्ते–८वान्ति तीर्थकरावेहारमार्ग शोधयन्ति इति वायवः - ९ ' स्तनन्ति शब्दं कुर्वन्ति स्तनः शब्दे वा संजातो येषां ते स्तनिताः, तथाविधाश्च ते कुमाराचेति क १० असुरकुमारादयोऽवगन्तव्याः एतेषाञ्चासुर कुमारादीनां भवनसंख्या तावत् - सामान्यतो द्विसप्ततिलक्षाधिकसप्तकोटयः सन्ति, विशेषतस्तु - दक्षिणदिग्व्यवस्थि- सुरकुमाराणां चतुस्त्रिंशल्लक्षसंख्यकानि भवनानि भवन्ति उत्तर दिग्व्यवस्थितानां पुनस्त्रिशल्लक्षाणि एकत्र - चतुष्षष्टिः ।
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दक्षिणदिग्वर्ति नागकुमाराणां चतुश्चत्वारिंशल्लक्षाणि, उत्तरदिग्वर्ति नागानान्तु - चत्वारिं शल्लक्षाणि, एकत्र - चतुरशीतिः । दक्षिणदिग्वासिनां द्वीपकुमारदिक्कुमारो -दधिकुमार - विद्युकुमार - स्तनितकुमाराग्निकुमाराणां च षण्णां प्रत्येकं चत्वारिंशल्लक्षाण्येव ।
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कुमार कहते हैं । जो गमन न करें उन्हें नग कहते है अर्थात् पर्वत या चन्दन आदि वृक्ष । उन नगों में होने वालों को नग कहते हैं । जिनके पर्ण अर्थात् पंख सुन्दर हो वे सुपर्ण । जो विद्योतित - दीप्त हो वे विद्युत् जो अपने अह्नों को पाताललोक में छोड़कर क्रीड़ा करने के लिए ऊपर जावें वे अग्नि । उदक (जल) एकत्रित होता है जिनमें वे उदधि अर्थात् समुद्र और उदधि में क्रीड़ा करने वाले देव भी उदधि कहलाते हैं, अप् जिनके द्विर्गत दो ओर हो वे द्वीप और द्वीप में क्रीड़ा करने वाले देव भी द्वीप कहलाते है । जो अवकाश देती हैं वे दिशाएँ कहलाती है । दिशाओं में क्रीड़ा करने वाले देव भी दिशा कहलाते हैं । जो वाती - चलती है अर्थात् तीर्थंकर के बिहार के मार्ग को साफ करती है, वे वायु । जो स्तनन्ति अर्थात् शब्द करते हैं वे स्तनित या जिन्होंने स्तन अर्थात् शब्द किया हो वे स्तनित । ऐसे कुमार असुर कुमार आदि कहलाते है ।
असुरकुमार आदि के भवनों की संख्या सामान्य रूप से सात करोड़ बहत्तर लाख (७७२०००००) है । विशेष रूप से दक्षिण दिशा के असुर कुमारो के भवन चौत्तीस लाख और उत्तर दिशा वालों के तीस लाख हैं । दोनों दिशाओं के मिलकर चौंसठ लाख भवन हैं ।
दक्षिण दिशा के नाग कुमारों के भवन चवालीस लाख और उत्तरदिशा के नाग कुमारों के भवन चालीस लाख हैं । दोनों के मिलाकर चौरासी लाख हैं ।
दक्षिण दिशा के द्वीपकुमारों दिशाकुमारों उदधिकुमारों, विद्यत्कुमारों स्तनितकुमारो और अकुमारों इन छहों मेंसे प्रत्येक के चालीस-चालीस लाख भवन हैं और उत्तर दिशा में
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧