Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
५२०
तत्त्वार्थसूत्रे मूलसूत्रम्-कप्पोववन्नगदेवाणं इंदसामाणियतायत्तीसग आयरक्खगलोगपाल परिसोववन्नग अणियाहिवइ पकिण्णग आभिजोगिय किब्विसिया दस-" ॥२३॥
छाया- "कल्पोपपन्नकदेवानाम् ईन्द्र-सामानिक त्रायस्त्रिशका-ऽऽत्मरक्षक-लोकपाल-परिषदुपपन्नका-ऽनीकाधिपति-प्रकीर्णका-ऽऽभियोगिक-किल्बिषिकाश्च दश-" ॥२३॥
तत्त्वार्थदीपिका-पूर्वं तावत् सामान्यतो विशेषतश्च चतुर्विधदेवानां भवनपति-वानव्यन्तर-ज्योतिष्क-वैमानिकानां स्वरूपनिरूपणानन्तरं तेषां चतुर्विधानामपि देवानां कृष्णनीलादि षड्लेश्या यथायथं प्ररूपिताः सम्प्रति–तेषु देवनिकायेषु चतुर्विधेष्वपि कियन्त इन्द्रसामानिकत्रायस्त्रिंशकाऽत्मरक्षकलोकपालादयो भवन्तीति प्ररूपयितुं प्रथमं कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवानामिन्द्रादयो दशभवन्तीति प्रतिपादयति “कप्पोववन्नग०-" इत्यादि ।
कल्पोपपन्नकदेवानाम् सौधर्माद्यच्युतान्तद्वादश कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवानामाज्ञैश्वयादि भोगोपभोगादिसम्पादकतया-इन्द्रसामानिकादयो दश परिवारा भवन्ति । तत्र-इन्दन्तिअन्यदेवासाधारणाऽणिमादिगुणयोगात् परमैश्वर्यं प्राप्नुवन्तीति-इन्द्रोः-१
समाने भवाः सामानिकाः इन्द्रस्य समान मेवा-ऽऽज्ञै-श्वयंवर्जितमायु-वीर्य-परिवार'सूत्रार्थ-'कप्पोववन्नगदेवाणं' इत्यादि । सू० । २२ ।
कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों में इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिंश, आत्मरक्षक, लोकपाल, पारिषद, अनीकाधिपति, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषक ये दस भेद होते हैं ॥२३॥
तत्त्वार्थदीपिका--पहले भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का सामान्य और विशेष रूप से स्वरूप बतलाया गया; तत्पश्चात् चारों प्रकार के देवों में पाई जाने वाली कृष्ण नील आदि लेश्याओं का निरूपण किया गया । अब यह बतालाते हैं कि चारों देवनिकायों में से किसमें इन्द्र. सामानिक आदि कितने भेद होते हैं ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए सर्वप्रथम कल्पोपपन्नक वैमानिक देवों के इन्द्र आदि दस भेदों का प्रतिपादन करते हैं
सौधर्म से लेकर अच्युत पर्यन्त बारह कल्पोपपान्नक वैमानिक देवों में आज्ञा ऐश्वर्य आदि तथा भोगोपभोग आदि के सम्पादक रूप से इन्द्र आदि दस परिवार होते हैं ।
(१) इन्द्र । अन्य देवों को प्राप्त न हो सकने वाले अणिमा आदि गुणों के योग से जो इन्दन्ति अर्थात् परम ऐश्वर्य को प्राप्त होते हैं, वे इन्द्र कहलाते हैं। वह राजा के समान होता है।
(२) सामानिक-जो इन्द्र तो न हों किन्तु इन्द्र के समान हो । अर्थात् इन्द्र के समान ही जिनका मनुष्य, विर्य परिवार भोग और उपभोग हों किन्तु इन्द्र के समान आज्ञा और ऐश्वर्य न हों, वे सामानिक देवलोक कहलाते हैं । उन्हें 'महत्तर भी' कहते हैं। ये देव राजा के पिता, गुरु या उपाध्याय के समान हैं,
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧