Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ३ सू० २०
शनावरणादीनां जघन्यस्थितिः ४११ ज्ञानावरण-दर्शनावरण-मोहनीया–ऽऽयुष्का-ऽन्तरायाणां पञ्चकर्मणां प्रकृतीनां स्थितिस्तावद् जघन्या-अन्तर्मुहूर्ता भवति ॥२०॥
तत्त्वार्थनियुक्तिः -पूर्व तावद् वेदनीयनामगोत्रकर्मणां मूलप्रकृतिनां स्थितिः प्रतिपादिता, सम्प्रति तदन्येषां ज्ञानावरणादिकर्मणां मूलप्रकृतीनां स्थिति प्रतिपादयितुमाह--"सेसाणं अंतो मुहुत्तं जहन्निया-” इति । शेषाणाम्-वेदनीयनामगोत्राऽतिरिक्तानां ज्ञानावरणदर्शनावरणमोहनीया–ऽऽयुष्या-ऽन्तरायाणां कर्मणां मूलप्रकृतिनां स्थितिः खलु जघन्या-ऽन्तमुहूर्त भवति । आबाधाकालोऽप्यन्तर्मुहूर्तमेवेति ।
उक्तञ्चोत्तराध्ययने २३ अध्ययने १९-२२ गाथायाम्- "अंतो मुहुत्तं जहन्निया-" इति । अन्तर्मुहूते जघन्यिका, इति ॥२०॥
मूलसूत्रम् - "कम्माणं विवागो अणुभावो-" ॥२१॥ छाया कर्मणां विपाकोऽनुभावः
तत्त्वार्थदीपिका---पूर्वं ज्ञानादिकर्मणां मूलोत्तरप्रकृतिबन्धनिरूपणपूर्वकं स्थितिबन्धः प्ररूपितः, सम्प्रति तावदनुभावबन्धं प्ररूपयितुमाह --- "कम्माणं विवागो अणुभावो-" इति ।
कर्मणां ज्ञानावरण-दर्शनावरणादीनां मूलप्रकृतीनां-मतिज्ञानावरणादीनामुत्तरप्रकृतीनाञ्च सर्वेषां कर्मणां विपाकः फलम्-अनुभाव उच्यते, कर्मबन्धस्य फलं विपाकोऽनुभाव इत्यर्थः ॥२१॥ वरण, मोहनीय, आयुष्क और अन्तराय कर्म रूप मूल प्रकृतियों की जघन्य स्थिति अन्तमुहूर्त प्रमाण है ॥२०॥
तत्त्वार्थनियुक्ति--पहले वेदनीय, नाम और गोत्र कर्म रूप मूल प्रकृतियों की स्थिति प्रतिपादन की गई है, अब शेष ज्ञानावरण आदि कर्म रूप मूल प्रकृतियों की स्थि त का प्रतिपादन करने के लिए कहते हैं--
शेष अर्थात् ज्ञानावरण, दर्शनावरण मोहनीय, आयुष्य और अन्तराय कर्मो की-मूल प्रकृतियों की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त मात्र है । अबाधाकाल भी अन्तर्मुहूर्त का होता है।
उत्तराध्ययन सूत्र के ३३ वें अध्ययन की गाथा १९-२२ में कहा है-जघन्य स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है ॥ ॥ २० ॥
सूत्रार्थ--'कम्माणं विवागो अणुभावो' ॥ २१॥ कर्मों का विपाक-फल-अनुभाव कहलाता है ॥ २१॥
तत्त्वार्थदीपिका--पहले ज्ञानावरण आदि कर्म रूप मूल प्रकृतियों का तथा उनके स्थितिबन्धकाल का निरूपण किया गया, अब अनुभावबन्ध का निरूपण करते हैं
ज्ञानावरण दर्शनावरण आदि मूल प्रकृतियों का तथा मतिज्ञानावरण आदि उत्तरप्रकृतियों का जो विपाक अर्थात् फल है, वह अनुभाव कहलाता है ॥२१॥
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧