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तत्त्वार्थसूत्रे
“मूलसूत्रम् -- काय भावभासुज्जुयअविसंवादणजोगेहिं सुहनामकम्मं” ॥७॥ छाया - " काय भावभाषाऋजुताऽविसंवादनयोगैः शुभनामकर्म ॥ ७ ॥ तत्वार्थदीपिका - “पूर्वसूत्रे देवायुप्यरूपपुण्यकर्मबन्धहेतवः प्ररूपिताः सम्प्रति - शुभनामकर्मबन्ध हेतून् प्ररूपयितुमाह---
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“काय भावभासुज्जुयअविसंवादणजोगेहिं सुहनामकम्मं " इति कायऋजुता भावऋजुता - भषा ऋजुताऽविसंवादनयोगरूपैश्चतुर्भिः कारणैः शुभनामकर्म बन्ध्यते । तत्र कायऋजुता कायस्य सरलता परवञ्चनकायचेष्टा वर्जनम् १ | भावऋजुता - अत्र भावशब्देन मनो गृह्यते, तेन मनोयोगऋजुता-मनसः सरलता. परवञ्चनमनः प्रवृत्तिवर्जनम् २ | भाषाऋजुता भाषा सरलता - अकुटिलभाषणम् ३ | अविसंवादनयोगः - विसंवादनम् अन्यथा प्रतिपन्नस्यान्यथाकरणं तद्रूपो योगो व्यापारः, तेन वा योगः सम्बन्धो विसंवादनयोगः, तदभावात् - अविसंवाद नयोगः ४ । एभिश्चतुर्भिःतुभिः शुभनाम कर्मबन्धो भवतीति । अस्य सप्तत्रिंशत्प्रकारैरुपभोगो जायते ॥ ७ ॥
तत्वार्थनिर्युक्तिः - - पूर्वं सरागसंयम-संयम संयमा - कामनिर्जरा - बालतपः प्रभृति देवायुष्यरूपपुण्यकर्मवन्धहेतवः प्ररूपिताः, सम्प्रति - शुभनामकर्मबन्धहेतुतया कायऋजुतादि चतुष्टयं प्रतिपादयितुमाह
सूत्रार्थ - 'काय भावभासुज्जुयअविसंवादण' इत्यादि । सूत्र - ७
काय, भाव - मन, भाषा-वचनकी सरलतासे, तथा अविसंवादन प्रतारण - ठगाई -न करने से शुभनामकर्मका बन्ध होता है ||७||
तत्त्वार्थदीपिका -- पूर्वसूत्र में देवायु रूप पुण्यकर्म के बन्ध के कारणों की प्ररूपणा की गई है। अब शुभनामकर्म के बन्ध के कारण कहते हैं
काय की ऋजुता १ भाव अर्थात् मन की ऋजुता २ भाषा अर्थात् वचन की ऋजुता ३ और अविसंवादन - कपटरहितयथार्थ प्रवृत्ति ४ इन चार कारणों से शुभनामकर्मका बन्ध होता है । कायकी सरलताको काय ऋजुता कहते हैं, ? एवं भाब अर्थात् मनकी सरलता को भावऋजुता
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कहते है । भाषा अर्थात् वचन की सरलता को भाषा ऋजुता कहता है । तथा धोखा देना अथवा गाई करना विसंवादन है, इसका अभाव अविसंवादन होता है, इसके योग - संबन्ध को अविसंवादन योग कहते हैं ४ । तात्पर्य यह है कि इन चारे कारणों से शुभनामकर्म का बन्ध होता है वह सैंतीस शुभ प्रकृतियों से भोगा जाता है ||७||
तत्वार्थ निर्युक्ति-इससे पूर्व बतलाया गया है कि सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिजरा और बालतपस्या आदि देवायु रूप पुण्य कर्म बन्ध के कारण हैं । अब शुभनाम कर्म के चार कारणों का कथन करते हैं-
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧