Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ४ सू. १३
गुप्तिः - ३ आलोकितभाजनभोजनम् - ४ आदानभाण्डामत्रनिक्षेणासमितिः-५ अनुवीचिभाषणम्६ क्रोधविवेकः -- ७ लोभविवेकः - ८ भयविबेक - ९ हास्यविवेकः- १० अवग्रहानुज्ञापनता - ११ अवग्रहसोमाज्ञानता - १२ स्वयमेवावग्रहानुग्रहणता - १३ साधर्मिकावग्रहमनुज्ञाय परिभुंजनता - १४ साधारण भक्तपानमनुज्ञाप्य परिभुञ्जनता - १५ स्त्रीपशुपण्डकसंसक्तकशयनासनवर्जनता - १६ स्त्रोकथावर्जनता - १७ पूर्वरतपूर्वक्रीडितानामननुस्मरणता - १८ स्त्रीणामिन्द्रिया लोकनवर्जनता - १९ प्रणीताहारवर्जनता - २० श्रोत्रेन्द्रियरागो परतिः - २१ चक्षुरिन्द्रियरागोपरतिः - २२ प्राणेन्द्रियरागोपरतिः२३ जिह्वेन्द्रियरागोपरतिः - २४ स्पर्शेन्द्रियरागोपरतिः - २५ इति ॥ १२ ॥
॥ १३
मूलसूत्रम् -“हिंसादिसु उभयलोगे घोरदुहं चउग्गइभमणं चछाया- - "हिसादिषूभयलोके घोरदुःखं चतुर्गतिभ्रमण च ॥ १३ ॥ तत्त्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे प्राणातिपातादिविरमणलक्षणेषु पञ्चसु व्रतेषु प्रतिव्रतमधिकृत्य पञ्च–पञ्चभावनाः प्ररूपिताः सम्प्रति - सामान्यतः सर्वव्रत साधारणी भावनाः प्रतिपादयितुमाह "हिंसादिसु" इत्यादि ।
हिंसादिषु-प्राणातिपाता-ऽनृत- स्तेया ब्रह्मचर्य - परिग्रहेषु पञ्चसु वक्ष्यमाणास्रवेषु – उभयलोके, समवायांगसूत्र के पचीसवें समवाय में कहा है
पाँच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएँ कही हैं, वे इस प्रकार हैं - ( १ ) ईर्यासमिति (२) मनोगुप्ति (३) वचनगुप्ति (४) आलोकितपानभोजन (५) आदानभाण्डमात्रनिक्षेपणा समिति (६) अनुवीचिभाषण (७) क्रोधविवेक (८) लोभविवेक ( ९ ) भयविवेक (१०) हास्य विवेक (११) अवग्रहानुज्ञापनता ( १२ ) अवग्रह समाज्ञानता (१३) स्वयमेवावग्रहानुग्रहणता (१४) साधर्मिकों की अनुमति लेकर आहार आदि भोगना (१५) सामान्य आहार- पानी की अनुमति लेकर भोगना (१६) स्त्री--पशु पण्डकरहित शयनासन का त्याग करना (१७) स्त्री कथा का त्याग (१८) पूर्व भोगे हुए भोगों का स्मरण न करना (१९) स्त्रियों की इन्द्रियों के अवलोकन का त्याग करना (२०) प्रणीताहारवर्जन (२१) श्रोत्रेन्द्रिय रागोपरति - शब्द के विषय में राग न करना (२२) चक्षुरिन्द्रिय के विषय में राग नकरना (२३) घ्राणेन्द्रिय के विषय में राग न करना (२४) जिह्वा - इन्द्रिय के विषयमें राग न करना और (२५) स्पर्शनेन्द्रिय के विषय में राग न करना ||१२||
सर्वव्रतसामान्यभावनानिरूपणम् ४६९
सूत्रार्थ - 'हिंसादिसु उभयलोगे घोरदुहं' इत्यादि सूत्र १३
हिंसादि पाप करने पर इह - परलोक में घोर दुःख होते हैं और चारों गतियो में परिभ्रमण करना पड़ता है ॥१३॥
तत्वार्थदीपिका - पूर्व सूत्र में प्राणातिपातविरमण आदि पाँच महाव्रतों में से प्रत्येक की पाँच-पाँच भावनाओं की प्ररूपणा की, अब ऐसी भावनाओं का निरूपण करते हैं जो सभी तों की स्थिरता के लिए समान हैं
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧