Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ३ सू. २२
प्रदेशबन्धनिरूपणम् ४२९ वर्गणायोग्या बध्यन्ते. न तु–गतिपरिणताः । यतोहि-गतिपरिणतिभाजः पुद्गला गच्छन्त्येव परिणामविशेषाद् आत्मनि न श्लिष्यन्ते, वेगवत्त्वात् । ६
____ अथ-सप्तमप्रश्नोत्तराभिप्रायः प्रतिपाद्यते सर्वेषु तावदसंख्येयरूपेषु आत्मप्रदेशेषु ज्ञानावरणादिसर्वप्रकृतिकर्मवर्गणायोग्याः पुद्गला बध्यन्ते, एकैकस्य पुनर्ज्ञानावरणादि कर्मणो योग्याः कतिपयाः पुद्गला एकैकस्मिन् आत्मप्रदेशे बध्यन्ते, असंख्येयप्रदेशात्मनो जीवस्यैकैकः प्रदेशोऽनन्तैर्ज्ञानावरणकर्मवर्गणायोग्यपुद्गलस्कन्धैर्बद्धो भवति । एवं-दर्शनावरणादि कर्म पुद्गलस्कन्धैरप्यनन्तैर्बद्धो बोध्यः । ७
अथान्ते चाऽष्टमप्रश्नोत्तराशयः प्रतिपाद्यते-अनन्तानन्तप्रदेशाः कर्मवर्गणायोग्याः पुद्गला बध्यन्ते, न तु-संख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशाः, तेषां खलु--संख्येयासंख्येयानन्तप्रदेशस्कन्धानामग्रहणयोग्यत्वाद् बन्धो न सम्भवति । अपितु-अनन्तानन्तप्रदेशानामेव पुद्गलस्कन्धानां बन्धो भवति, तत्रानन्ते पुद्गलराशौ भूयोऽनन्तपुद्गलप्रक्षेपाद् अनन्तानन्ता इति व्यपदिश्यन्ते, ते चानन्तानन्तप्रदेशाः पुद्गला ज्ञानावरणादि कर्मवर्गणायोग्या आत्मन एकैकस्मिन् प्रदेशो बध्यन्तेश्लिष्यन्ते कर्मवर्गणाया अयोग्यास्तु-न बध्यन्ते, इत्येवं प्रदेशबन्धस्वरूपं प्ररूपितम् ।
तत्र-प्रकृष्टा देशा बहवोऽवयवा येषु ते प्रदेशाः स्कन्धा इत्युच्यन्ते ? उक्तञ्चोत्तराध्ययने-३३-अध्ययने–१७-१८-गाथायाम्गति परिणत नहीं होते, उन्हीं का बन्ध होता है। जो पुद्गल गमन करते हुए होते हैं, उनका आत्मा के साथ बन्ध नहीं होता, क्योंकि वे वेगवान् होते हैं
सातवें प्रश्न और उत्तर का आशय-एक आत्मा के असंख्यात प्रदेश होते हैं। उन सभी प्रदेशों में ज्ञानावरण आदि के योग्य कर्मवर्गणा के पुद्गल आत्मा के प्रत्येक प्रदेश के साथ बद्ध होते हैं। इस प्रकार आत्मा का एक-एक प्रदेश अनन्त-अनन्त ज्ञानावरण आदि कर्मों के योग्यपुद्गलों से बद्ध है यही बात दर्शनावरण आदिकर्मो के विषय में भी समझनी चाहिए ।
अन्तिम आठवें प्रश्नोत्तर का अभिप्राय-कर्म के योग्य अनन्तानन्तप्रदेशी पुद्गलों का बन्ध होता है। संख्यातप्रदेशी, असंख्यातप्रदेशी या अनन्तप्रदेशी पुद्गल स्कन्धों में आत्मा के साथ बन्ध होने की योग्यता ही नहीं, अतएव उनका बन्ध भी नहीं होता । अनन्त प्रदेशों वाले पुद्गलस्कंध में पुनः अनन्त प्रदेश ओर मिला दिये जाएँ तो वह स्कंध अनन्तानन्त प्रदेशी कहलाता है। ऐसे अनन्तानन्त प्रदेशी कर्मपुद्गलों के स्कंध एक-एक आत्मप्रदेश में बद्ध होते हैं। अयोग्य पुद्गलों का बन्ध नहीं होता है ।
यह प्रदेशबन्ध का निरूपण हुआ । जिस पुदगल में बहुत-से प्रदेश और देश होते हैं, वह स्कंध कहलाता है । उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन ३३ की गाथा १७-१८ में कहा है
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧