Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० ३ सू. २२
प्रदेशबन्धनिरूपणम् ४२५
“नामप्रत्ययाः पुद्गला बध्यन्ते - १ सर्वतः सर्वदिग्भ्यः पुद्गला बध्यन्ते - २ कायादियोगविशेषात् परिणतिवैचित्र्यात् सर्वेषामसमानः पुद्गलकर्मप्रदेशबन्धः - ३ सूक्ष्माः पुद्गला बध्यन्ते - ४ एकक्षेत्रावगाढाः पुद्गला बध्यन्ते - ५ स्थितिपरिणताः पुद्गला बध्यन्ते - ६ सर्वात्मप्रदेशेषु तेषां पुद्गलानां बन्धो भवति-७ अनन्तानन्तप्रदेशाः पुद्गला बध्यन्ते-८ इत्येवमष्टावुत्तराणि तेषां प्रश्नानाम्
अयमेतेषामभिप्रायः- - नामप्रत्ययाः नाम्नो ज्ञानावरणाद्यन्तरायपर्यन्तस्या - ऽन्वर्थसंज्ञकस्या ऽष्टविधकर्मणः प्रत्ययाः कारणानि नामप्रत्यया स्ते पुद्गला भवन्ति,
तान् पुद्गलान् विना ज्ञानावरणादि कर्मोदयादि न सम्भवति, मुक्तस्येवात्मनः संसारिण इति भावः । यद्वा-नामप्रत्ययो निमित्तं येषां ते नामप्रत्ययाः गतिजात्यादिभेदानि नामकर्माणिइन आठ प्रश्नों के उत्तर क्रमश: इस प्रकार हैं
(१) कार्मणवर्गणा के वे पुद्गल नाम - प्रत्यय बँधते हैं अर्थात् जिस प्रकृति का जो नाम है उसी के अनुसार बँधते है ।
(२) सभी दिशाओं से - सब ओर से बँधते हैं ।
(३) सब जीवों के योग का व्यापार समान नहीं होता। किसी जीव के योग का व्यापार तीव्र होता है तो किसी के योग का व्यापार मन्द होता है । तीव्रता और मन्दता में भी अनेक श्रेणियाँ होती हैं, अतएव सब जीवों का प्रदेशबन्ध समान नहीं होता, वरन् योग की असमानता के कारण असमान होता है । योग की प्रवृत्ति तीव्र हो तो अधिक पुद्गलप्रदेशों का बंध होता है और यदि मन्द होती हैं तो कम प्रदेश बँधते हैं ।
(४) सूक्ष्म पुद्गलों का ही बन्ध होता है ।
(५) एक क्षेत्रावगाढ पुद्गल ही बद्ध होते हैं अर्थात् जहाँ आत्मा के प्रदेश हैं, वहीं पर अवगाढ पुद्गल आत्मप्रदेशों के साथ श्लिष्ट हो जाते हैं; इधर-उधर से आकर्शित होकर नहीं बँधते ।
(६) जो कर्मपुद्गल स्थित हों अर्थात् गमन न कर रहे हों, उन का ही बन्ध होता है ।
(७) उन पुद्गलों का बन्ध आत्माके सभी प्रदेशों में होता है । जैसे अग्नि में तपे हुए लोहे के गोले को पानी में छोड़ दिया जाय तो वह अपने सभी प्रदेशों से जलको ग्रहण करता है, उसी प्रकार आत्मा अपने सभी प्रदेशों से कर्मपुद्गलों को ग्रहण करता है । (८) अनन्तानन्त प्रदेशी पुद्गल ही बँधते हैं ।
यह पूर्वोक्त आठ प्रश्नों के उत्तर हैं। इनका आशय यह है कि आत्मा के साथ बँधने वाले पुद्गल नाम प्रत्यय होते हैं अर्थात् अपने-अपने अर्थ के अनुसार नाम वाले कर्मों के कारण होते हैं । ऐसे पुद्गलों के बिना ज्ञानावरण आदि कर्मों का उदय आदि नहीं हो जैसे मुक्तात्मा को उदय आदि नहीं होता । अथवा नाम जिनका प्रत्यय अर्थात् कारण
सकता,
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શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧