Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
३७८
तत्वार्थसूत्रे
“संज्वलयन्ति यतिं यत् संविग्नं सर्वपापविरतमपि ।
तस्मात् संज्वलना इत्यप्रशमकरा निरुच्यन्ते ॥१॥ इति, संज्वलनाश्च ते कषायाः संज्वलनकषायाः तथाचैकैकस्याऽप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान संज्वलनकषायस्य क्रोधादयश्चत्वारो भेदा इति द्वादशभेदाः संजाताः पूर्वोक्ताः, अनन्तानुबन्धिनश्च चत्वारः क्रोधमान- माया लोभा इति कषायमोहनीयस्य षोडशभेदाः भवन्ति । तत्रा - sप्रत्याख्यानकषायक्रोधमान-माया-लोभोदाहरणानि भूराज्य-स्थि मेषशृङ्ग - कर्दमरागाः, 1
प्रत्याख्यानकषायक्रोधमानादेः रेणुराजि-काष्ठ- गोमूत्रमार्ग - खञ्जनरागा उदाहरणानि । संज्वलनकषायक्रोधादेरुदाहरणानि जलराजि - तृणशलाकावलेखनिका हरिद्रारागाः भवन्ति इति षोडशविधं कषायवेदनीयं प्ररूपितम् ।
सम्प्रति-नवविधं नोकषायवेदनीयं प्रतिपादपति, हास्यं रतिः, अरतिः - शोकः, भयं - जुगुप्सापरीषह के उपस्थित होने पर एकदम संज्वलित ( कषायाविष्ट) कर देते हैं । इस कारण उन्हें संज्वलन कषाय कहते हैं । कहा भी है
जो कषाय संसार से विरक्त और समस्त पापों से रहित साधु को भी संज्वलित कर देते हैं, अर्थात् मुनि-अवस्था में भी जिनकी सत्ता रहती है, उन्हें संज्वलन कषाय कहते हैं ।
संज्वलन रूप कषायों को संज्वलन कषाय कहते हैं । इस प्रकार अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान और संज्वलन कषाय के क्रोध आदि चार-चार भेद होने से बारह भेद हो जाते हैं । इनमें अनन्तानुबन्धी के पूर्वोक्त चार भेद सम्मिलित कर देने पर कषाय मोहनीय के सोलह भेद होते हैं । अप्रत्याख्यान क्रोध मान, माया और लोभ के उदाहरण ये हैं- क्रोध का स्वभाव तालाब के तरड़, (१) मान का स्वभाव अस्थि (हड्डी) का स्तम्भ ( २ ) माया का स्वभाव मेष शृङ्ग (मेढेका सींग) और लोभका स्वभाव कर्दम राग । अर्थात् अप्रत्याख्यान क्रोध का स्वमाव तालाबकी तड़ (दरार) मान का स्वभाव हड्डी का स्तम्भ, मायाका स्वभाव मेष- मेंढा- का सींग, लोभ का स्वभाव कर्दम राग के समान होता है ।
प्रत्याख्यान कषाय के क्रोध मानादि के उदाहारण है - क्रोध का स्वभाव बालू में खींची हुई लकीर, मान का स्वभाव काष्ट का स्तम्भ, मायाका स्वभाव चलते बैल के मूत्र, लोभ का स्वभाव खंजन के समान होता है । संज्वलन क्रोध जलमें खींची हुई रेखा, मान का स्वभाव तृण का स्तम्भ, माया का स्वभाव अवलेखनिका वांस की खपची - वांस की छिली हुई पतली त्वचा, लोभ का स्वभाव हल्दी पतंग के रंग के समान होते है । इस प्रकार कषाय वेदनीय के सोलह भेदों का निरूपण किया गया है ।
अब नौ प्रकार के नो कषाय कर्म का प्रतिपादन करते हैं - (१) हास्य (२) रति (३) अरति
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧