Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ० ३ सू०९
मोहनीयकर्मण उत्तरकर्मनिरूपणम् ३७९ पुरुषवेदः-स्त्रीवेदः-नपुंसकवेदश्चेति। तत्र-कषायैकदेशत्वात्-कषायविशेषत्वाद्वा हास्यादयो नोकषायशब्देन व्यपदिश्यन्ते । मिश्रार्थको वा नोशब्दोऽत्र गृह्यते, तथाचते हास्यादयः कषायसहकृताः सन्तः स्वकार्यसम्पादने समर्था भवन्ति, न खलु हास्यादीनां कषायं विना स्वकार्यसम्पादने पृथक्सामर्थ्यमस्ति ।
यद्दोषश्च यः कषायो भवति तत्सहचरिणो हास्यादयोऽपि तत्तदोषा एव भवन्ति तथाचाऽनन्तानुबन्ध्यादि सहचरिताहास्यादयस्तत्स्वभाबका एव सम्पद्यन्ते । तस्मादेतेऽपि हास्यादयश्चरणोपघातकारित्वेन तत्तुल्यतयैव ग्रहीतव्याः उक्तञ्चान्येनाऽपि
"कषायसहवर्तित्वात्-कषायप्रेरणादपि- ।
हास्यादिनवकस्योक्ता-नोकषायकषायता-॥१॥-इति । तत्र-हास्य नो कपायमोहोदयात् सकारणं-निष्कारणं वा हसति रङ्गावतीर्णनटवत् । रतिनोकषायमोहोदयाद् बाह्याभ्यन्तरबस्तुषु-आसक्तिलक्षणा प्रीतिर्भवति, इष्टेषु वा रूपरसादिषु-आसक्ति रूपा रतिः संजायते-। अरतिनोकषायमोहोदयात् धर्मेऽप्रीतिरूपाऽरति भवति । शोकरूप नो कषाद मोहोदयात् विलापनं करोति, स्वशिरआद्यवयवान आहन्ति-निःश्वसति-रोदिति, भुवस्तले लुठति च- ।
भयरूपनोकषायमोहोदयात् उद्विजति त्रस्यति-कम्पते,इत्यादि । जुगुप्सालक्षणनोकषायमोहो(४) शोक (५) भय (६) जुगुप्सा (७) पुरुष वेद (८) स्त्री वेद और (९) नपुंसक वेद ।
___ कषाय के एक देश होने से अथवा कषाय विशेष होने से हास्य आदि को नो कषाय कहा जाता है । अथवा नो शब्द यहाँ (मिश्र) अर्थ में ग्रहण किया गया है । इसका आशय यह है कि कषाय के साथ मिलकर ही हास्य आदि अपना कार्य करने में समर्थ होते हैं। कषाय के अभाव में हास्य आदि अपना कार्य सम्पादन करने में स्वतन्त्र रूप से समर्थ नहीं होते हैं। ___ कषाय जिस दोष वाला होता है, उसके साथी हास्य आदि भी उसी दोष को उत्पन्न करते हैं। ऐसी स्थिति में अनन्तानुबन्धी आदि से सहचरित हास्य आदि भी उसी के से स्वभाव वाले होते हैं।
अतएव इन हास् । आदि को भी, चारित्र का घातक होने के कारण कषायों के तुल्य ही समझना चाहिए । दूसरों ने भी कहा है-ये हास्य नो कषायों के साथी होने के कारण तथा कषायों को प्रेरित करने अर्थात्--भड़काने वाले होने से नो कषाय कहे गये हैं ॥१॥ हास्य नो कषाय मोहनीय के उदय से जीव रंग भूमि में नट के समान सकारण अथवा निष्कारण ही हँसने लगता है। रति नो कषाय मोहनीय के उदय से बाह्य और आभ्यन्तर वस्तुओं में आसक्ति-प्रीति उत्पन्न होती है अथवा इष्ट रूप-रस आदि में आसक्तिरूप प्रीति होती है। अरति नो कषाय मोहनीय के उदय से धर्म में अरुचि उत्पन्न होती है । शोक नो कषायमोह के उदय से मनुष्य विलाप करता है, अपने मस्तक आदि अवयवों को पीटता है, ठण्डी सांसें लेता है, रोता है और धरती पर लोटताहै ।
भय नोकषायमोहनीय के उदय से उद्विग्न होता है-घबराता है, त्रस्त होता है काँपने लगता
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧