Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तस्मात् तेषां द्रव्याणां स्वरूपज्ञानार्थमसाधारणं विशेषलक्षणमाह
'गुणपज्जायासयो दव्वं' इति । गुणपर्यायाश्रयो द्रव्यमित्युच्यते । तत्र - गुणास्तावद् रूपादयो ज्ञानादयश्च संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्तसंख्यया संख्यायमानत्वाद् गुणपदव्यपदेश्याः द्रव्यस्य परिणतिविशेषाः शक्तिविशेषा एव त एव क्रमेण सह भवन्तः परितः सर्वतोमुखत्वात् पर्यायाः भेदाः पिण्ड - घट -- कपालादयः उच्यन्ते । तथाच-यवहारनयापेक्षया । युगपदवस्थायिनो गुणा व्यपदिश्यन्ते अयुगपद्अवस्थायिनः पर्याया व्यवह्रियन्ते ।
ततश्च-समभिरूढनयाभिप्रायेण इन्दन - शकन-पूर्दारणादयोऽर्थविशेषाः रूपादयश्च भावान्तराः भावभेदाः इन्द्र-शक्र-पुरन्दररूपादिसंज्ञान्तरप्रवृत्तौ निमित्तभूता अर्थभेदाः संज्ञाभेदाश्च गुणपर्याया निमित्ता भवन्ति । एवञ्च–व्यवहारनिश्चयात्मक गुणशब्दाभिधेयपर्यायशब्दाऽभिधेयशालिद्रव्यमुच्यते । द्रव्यं तावत्-स्थित्यंशरूपं परिणामि भवति, उत्पादव्ययलक्षणाः पुनर्गुणपर्यायाः परिणामा भवन्ति । एवञ्च - स्थित्यात्मकस्य द्रव्यस्य रूपादयो ज्ञानादयः पिण्ड-घट-कपालादयश्च तद्भावलक्षणपरिणामा भवन्ति । न खलु कदाचिद् निष्परिणामं द्रव्यं सन्तिष्ठते, तत्र द्रव्यतः -- गुणपर्यायाणां विकाराणां कथञ्चिद् भेदोऽभेदश्च । नत्वेकान्तेन भेदः, अभेदों वा, यथा - कदाचित् परिणामि-परिणामयोर्भेदप्रधानायां व्यावहारिक्या माधाराधेयविवक्षायां स्थित्यंशे परिणामिनि रूपादयः पिण्डादयश्च परिणामा भेदान्तरकल्पनया भवन्ति ।
तत्त्वार्थ सूत्रे
धर्म आदि द्रव्यों के विशेष स्वरूप का परिज्ञान नहीं हो सकता । अतएव उनके स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए विशेष लक्षण कहते हैं ।
जो गुणों और पर्यायों का आधार हो वह द्रव्य है । रूप आदि और ज्ञान आदि गुण कहलाते हैं । संख्यात, असंख्यात और अनन्त संख्या के द्वारा उनकी गणना की जाती है, इस कारण उन्हें गुण कहते हैं । द्रव्य की विशिष्ट अवस्था पर्याय कहलाती हैं । द्रव्य शाश्वत है, पर्याय का उत्पाद और विनाश होता रहता है । मृत्तिका को यदि द्रव्य मान लिया जाय तो घट, कपाल आदि उसके पर्याय हैं । व्यवहारनय की अपेक्षा गुण सहभावी और पर्याय क्रमभावी होते हैं ।
समभिरूढ नय की अपेक्षा से इन्दन - शकन और पूर्दाहादि ( नगर का विध्वंस) आदि अर्थ विशेष और रूप आदि भावान्तर भावभेद इन्द्र, शक्र, पुरन्दर आदि संज्ञा की प्रवृत्ति में निमित्तभूत अर्थभेद और संज्ञाभेद गुण - पर्याय के निमित्त से होते हैं । इस प्रकार जो गुणों और पर्यायों से युक्त हो अर्थात् गुण - पर्यायमय हो, वही द्रव्य कहलाता है ।
द्रव्य ध्रौव्य - अंश है और परिणामी है, पर्याय उत्पाद और व्यय रूप होते हैं । परिणाम हैं । गुण द्रव्य का अंश कहलाता है । इस प्रकार स्थितिरूप द्रव्य के रूप आदि और ज्ञानादि तथा पिण्ड, घट, कपाल आदि गुण और पर्याय हैं । कोई भी द्रव्य कभी भी परिणामरहित नहीं होता । गुण और पर्याय द्रव्य से कयंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧