Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तत्त्वार्यसूत्रे पञ्चविधं भवति मत्यादिभेदतः यथामति-श्रुता-ऽवधि-मनःपर्यव-केवलज्ञानानामावरणानि पञ्चसन्ति तेन ज्ञानावरणीयं पञ्चविधं तथाहि-मतिज्ञानावरणम् श्रुतज्ञानावरणम्-अवधिज्ञानावरणम्मनःपर्यवज्ञानावरणम्-केवलज्ञानावरणञ्चेति संक्षेपः ॥६॥
तत्त्वार्थनियुक्तिः-पूर्वसूत्रेऽष्टविधमूलकर्मप्रकृतिबन्धस्य सप्तनवतिविधोत्तरप्रकृतिबन्धेषु-प्रतिपादितव्येषु प्रथमं ज्ञानावरणकर्मणो भेदान् प्रतिपादयति-"नाणावरणिज्ज" इत्यादि । ज्ञानावरणीय पञ्चविधं भवति तथाहि मतिज्ञानावरणम्-१ श्रुतज्ञानावरणम्-२ अवधिज्ञानावरणम्-३ मनःपर्यवज्ञानावरणम्-४ केवलज्ञानावरणञ्चेति, ज्ञानावरणरूपप्रथमकर्ममूलप्रकृतिबन्धस्योत्तरप्रकृतिभेदा पञ्च ।
तत्र-ज्ञस्वभावस्यात्मनः प्रकाशरूपस्य ज्ञानावरणक्षयोपशमक्षयसमुद्भूताः प्रकाशविशेषाः मतिज्ञानादिपर्यायाः बहुभेदा भवन्ति । तथाहि-अवग्रह-ईहा-ऽवायधारणादयः इन्द्रियाऽनिन्द्रियनिमित्तत्त्वाद् मतिज्ञानस्य भेदाः । अङ्गाऽनङ्गविकल्पाः श्रुतज्ञानस्य मेदाः। भवक्षयोपशमजन्यप्रतिपात्यादिविकल्पाः अवधिज्ञानस्य भेदाः ऋजुविपुलमतिविकल्पो मनःपर्यवज्ञानस्य भेदौ । सयोगायोगस्थादिविकल्पाः केवलज्ञानस्य भेदा भवन्ति ।
तत्र-इन्द्रियनिमित्तं श्रोत्रादिपञ्चकसमुद्भवं क्षयोपशमजन्यं योग्यदेशावस्थितस्वविषयपाहिज्ञानं अब उन भेदों का क्रमशः प्रतिपादन करने के लिए सर्वप्रथम ज्ञानावरणीय कर्म के पाँच भेदों का निर्देश करते हैं
मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवलज्ञान के आवरण भी पाँच हैं- मति ज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यवज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण ॥६॥
तत्त्वार्थनियुक्ति—पूर्वसूत्र में कथित आठ मूलप्रकृति बन्ध की सत्तानवे उत्तरप्रकृतियों का प्रतिपादन करता है। उनमें से प्रथम ज्ञानावरण कर्म प्रकृति के भेदों का कथन करते हैं ।
मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यव और केवल ज्ञान, इन पाँच ज्ञानों के आवरण भी पाँच होते हैं, यथा- १ मतिज्ञानावरण २ श्रुतज्ञानावरण ३ अवधिज्ञानावरण ४ मनःपर्यवज्ञानावरण ५ केवलज्ञानावरण । यह प्रथम ज्ञानावरण नामक मूल प्रकृति की पांच उत्तर प्रकृतियाँ हैं।
ज्ञान स्वभाव वाले प्रकाशरूप आत्मा के ज्ञानावरण कर्म के क्षय और क्षयोपशम से उत्पन्न होनेवाले प्रकाश विशेष रूप मतिज्ञान आदि बहुत-से भेद होते हैं । जैसे-अवग्रह, ईहा, अवाय, धारणा आदि । मतिज्ञान इन्द्रियों और मन के निमित्त से उत्पन्न होता है, अतएव मतिज्ञान के अनेक भेद हैं। अंगप्रविष्ट, और अंगबाह्य ये दो श्रुतज्ञान के भेद हैं । भव प्रत्यय और क्षयोपशमप्रत्यय यह दो अवधिज्ञान के भेद हैं । क्षयोपशमप्रत्यय के भी प्रतिपाती, अप्रतिपाती आदि छह भेद होते हैं। ऋजुमति और विपुलमति, ये दो मनःपर्यवज्ञान के भेद हैं । सयोगि केवल ज्ञान, अयोगिकेवलज्ञान आदि केवलज्ञान के भेद हैं |
जो श्रोत्र आदि पाँच इनद्रियों से उत्पन्न होता है- क्षयोपशम रूप अन्तरंग कारण से
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧