Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
दीपिकानिर्युक्तिश्च अ० २ सू. ३१
परिणामस्वरूपनिरूपणम् ३३५ कर्कशतमादिश्च सादिः परिणामः । पञ्चविधो रसः - तिक्त २ कटुक-२ कषाया- ऽम्ल-४ मधुररूपः । तिक्ततरतिक्ततमादिश्च सादिः परिणामः । द्विविधो गन्धःधः - सुरभिर्दुरभिश्च, सुरभितरादिश्च सादिः परिणामः । वर्णश्च - पञ्चविधः कृष्णदिः कृष्णतरादिश्च सादिः परिणामो बोध्यः । किन्तु - पुद्गलद्रव्येऽपि द्रव्यत्व - मूर्तत्व - सत्त्वादयः परिणामाः अनाद्या एव सन्ति, न तु साद्याः इत्यवधेयम्. । एवं च यथा रूपीषु पुद्गलद्रव्येषु सादिरनादिश्च परिणामः प्रतिपादितः तथा - अरूपिष्वपि द्रव्येषु सादिरपि परिणामः सम्भवति । यथा -- योगोपयोगलक्षणः परिणामो जीवेषु सादिः ।
एवं धर्मादिष्वपि - अरूपिद्रव्येषु सादिरपि परिणामः सम्भवति, यथा - स्वयं गन्तुर्जिंगमिषापरिणतस्य खलु इदानीं धर्मद्रव्यमुपग्राहकं भवति । उपग्राहकत्वञ्चेदं धर्मपर्यायः पूर्व नासीत् तस्य गन्तुर्गतिपरिणतेरभावात् । अधुनाचोपजायमानः स उपग्राहकत्वपरिणामः सादिरेव सम्भवति, न तु-अनादिः ।
मैत्रादिगन्तृगत्युपरमे च विनाशी भवति, इति - उत्पादविनाशवत्त्वात् सादिमत्त्वम् । उपग्राह्यं विना च नोपग्राहकत्वं सम्भवति । आकाशद्रव्यमपि - अवगाहनाकर्तुरवगाहदानपर्यायेण परिणमते, तस्याऽवगाहदानपर्यायश्चेदानींतनत्वात् सादिरेव सम्भवति, न तु - अनादिः । कालद्रव्यमपि - वृत्त आदि सादि परिणाम है । रस पाँच प्रकार का है - ( १ ) तिक्त ( २ ) कटुक (३) कषाय ( ४ ) अम्ल - खट्टा और (५) मधुर | तिक्ततर, तिक्ततम आदि सादि परिणाम है । गंध दो प्रकार की है - सुगंध और दुर्गंध । सुरभितर आदि सादि परिणाम है |
वर्ण कृष्ण आदि पाँच प्रकार का है । कृष्णतर आदि सादि परिणाम जानना चाहिए । किन्तु पुद्गल द्रव्य में द्रव्यत्व, मूर्त्तत्व, सत्त्व आदि परिणाम अनादि ही होते हैं, सादि नहीं । इस प्रकार जैसे रूपी पुद्गल द्रव्यों में सादि और अनादि दोनों प्रकार का परिणाम प्रति - पादन किया गया है, उसी प्रकार अरूपी द्रव्यों में भी सादि परिणाम भी हो सकता है, जैसे योग और उपयोगरूप परिणाम जीवों में सादि होता है ।
इसी प्रकार धर्म आदि अरूपी द्रव्यों में भी सादि परिणाम का संभव है । जैसे गमन करने की इच्छा वाला कोई पुरुष जब गमन करना प्रारंभ करता है तो धर्मद्रव्य उसके गमन में निमित्त बन जाता है । यह निमित्त बन जाना धर्मद्रव्य का पर्याय है, जो पहले नहीं था, अब उत्पन्न हुआ है । अतएव यह गति निमित्तत्व परिणाम सादि ही हो सकता है, अनादि नहीं । जब वह मैत्र नामक पुरुष गति से विरत हो जाता है - स्थिर हो जाता है, तब वह गति निमित्तत्व भी नहीं रह जाता । इस प्रकार उत्पाद और विनाशवान् होने से वह सादि है । उपग्राह्य के अभाव में उपग्राहकत्व भी नहीं होता ।
आकाशद्रव्य भी अवगाहना करने वाले के लिए अवगाहदान रूप पर्याय से परिणत होता है । वह अवगाहदानपर्याय अभी-अभी उत्पन्न होने के कारण सादि ही हो सकता है, अनादि नहीं ।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧