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तत्त्वार्थसूत्रे
माह-"वेमायणिद्धलुक्खत्तणेण खंधाणं बंधो” इति । विमात्र-स्निग्ध-रूक्षत्वेन स्कन्धानां बन्धः, विषमा असमा मात्रा अंशो ययोस्तौ विमात्रौ, स्पर्शाख्यो गुणः स्नेहः, तत्परिणामः स्निग्धः ।
एवं रूक्षोऽपि स्पर्शाख्यगुणपरिणामः, स्निग्धश्च-रूक्षश्च स्निग्धरूक्षौ, एकः स्निग्धः-अपरो रूक्ष इत्यर्थः । विमात्रौ च तौ स्निग्धरूक्षौ तयोर्भावो विमात्रस्निग्ध-रूक्षत्वं तेन-विमात्रस्निग्ध रूक्षत्वेन तत्परिणत्या पत्त्या स्कन्धानां द्यणुकादीनां बन्धो भवतीति भावः ।
तथाच ---विमात्रयोः स्निग्धरूक्षयोः परस्परसंयुक्तोः परमाण्वादिपुद्गलयोरेकत्वपरिणामलक्षणबन्धेन द्यणुकादिस्कन्धाः सम्पद्यन्ते । एवञ्च-एकस्थानाद् गलति-अपरं स्थानं पूरयति इति पूरणाद् गलनाच्च पुद्गलाः पूरकत्वेन स्कन्धान् निष्पादयन्ति गलनेन च-स्कन्धभेदं कुर्वन्ति । पुद्गलाः । तत्र-सकलो बन्धः संयोगपूर्वको भवति, रूक्षता स्नेहविशेषात् परमाणोः परमाण्वन्तरेण संश्लेषात्मको बन्धो मृद्रजोभिस्तृणादिबन्धवत् संजायते ।
तथाहि-परमाणव एकगुणस्निग्धादि क्रमेण संख्येयाऽसंख्येयाऽनन्ताऽनन्तगुणास्निग्धाः सन्ति उदकाजागोमहिष्युष्ट्रयवीदुग्ध-घृतस्नेहप्रवर्षाऽप्रकर्षवत् । एवम्-एकगुणरूक्षादिक्रमेण हीनमध्यमोत्कृष्टसंख्येयाऽसंख्येयानन्तगुणरूक्षा भविन्त । तत्र-चिक्कणत्वलक्षणः स्नेहः तद्विपरीतः
असमान अंशों में स्निग्धता और रूक्षता होने से बंध होता है । स्नेह का मतलब है चिकनापन और रूक्षता का अर्थ है सूखापन । यह दोनों पुद्गल के स्पर्शनामक गुण की अवस्थाएँ हैं । दो परमाणुओं में से एक स्निग्ध और दूसरा रूक्ष होता है और वह स्निग्धता एवं रूक्षता जब विसदृश मात्रा में होती है तब उनका परस्पर में बन्ध हो जाता है।
इस प्रकार विभिन्न मात्रा (अंश) वाले परस्पर में संयुक्त स्निग्धता और रूक्ष परमाणु आदि पुद्गलों के एकत्व परिणमन रूप बन्धन से द्वयणुक आदि स्कंध उत्पन्न हो जाते हैं। इस तरह एक स्थान से गलता अर्थात् बिछुड़ता है और दूसरे स्थान को पूरता हैदूसरे में मिलता है, इस प्रकार पूरण और गलन के कारण वह पुद्गल कहलाता है । पूरक होकर वह स्कंधों को उत्पन्न करता है और गलन करके स्कंध में भेद उत्पन्न करता है। जितने भी बन्धन हैं, सब संयोग पूर्वक ही होते हैं। स्निग्धता और रूक्षता की विशेषता के कारण परमाणु का दूसरे परमाणु के साथ संश्लेषरूप बन्ध होता है ।
सब परमाणुओं में स्निग्धता एक-सी नहीं होती । किसी में एक गुण (डिगरी) स्निग्धता होती है, किसी में असंख्यात गुण और किसी में अनन्त गुण भी स्निग्धता होती है।
जल में थोड़ी स्निग्धता है। उसकी अपेक्षा बकरी के दूध में अधित है और फिर गाय, भैस, उँटनी एवं भेड़ के दूध में क्रमशः अधिकाधिक स्निग्धता पाई जाती है । घृत में
और अधिक होती है। इसी प्रकार रूक्षता भी न्यूनाधिक मात्रा में विद्यमान रहती है । कोई पुद्गल हीन रूक्षता वाला कोई मध्यम रूक्षता वाला और कोई उत्कृष्ट रूक्षता वाला होता है ।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧