Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ० २ सू० २८
स्कन्धानां बन्धत्वनिरूपणम् ३०९ तत्त्वार्थदीपिका- पूर्वं भेद-संधातलक्षणाभ्यां पृथक्त्वैकत्वाभ्यां परमाणुपुद्गलानां स्कन्धात्मना-उत्पादो भवतीत्युक्तम्, तत्र-किं संयोगादेव ध्यणुकादिलक्षणः संघातो भवति ? आहोस्वित्कश्चिद्विशेष आस्थीयते, इत्याशङ्कायां संयोगे सति एकत्वपरिणामात्मकाद् बन्धात् खलु संघातो निष्पद्यते इति प्रतिपादितम् । तत्रेयं पुनराशङ्का जायते यत्कथं तावत् पुद्गलजात्यपरित्यागे सति केषाञ्चित्पुद्गलानां बन्धो भवति ? केषाञ्चिच्च बन्धो न भवति, इति तत्समाधानार्थ मुच्यते "वेमायणिद्धलुक्खत्तणेण खंधाणं बंधो-" इति । विमात्रस्निग्धरूक्षत्वेन स्कन्धानां बन्धः विषमा-असमाना मात्रा-अंशो ययोस्तौ विमात्रौ, तौ च तौ स्निग्धरूक्षौ विमात्रस्निग्धरूक्षौ, तयोर्भावो विमात्रस्निग्धरूक्षत्वं तेन विमात्रस्निग्धरूक्षत्वेन असमस्निग्धरूक्षत्वेन ब्यणुकादिस्कन्धानाम् एकत्वपरिणामलक्षणो बन्धो भवतीति भावः ।
एवञ्च--- तेषां सर्वेषां पुद्गलानां पुद्गलात्मत्वाविशेषेऽपि अनन्तपर्यायाणां केषाञ्चित् परस्परविलक्षणपरिणामाऽहितस्निग्धरूक्षत्वसामर्थ्याब्दन्धो भवति, केषाञ्चित्पुनस्तथाविधपरिणामाहितत्वाभावाब्दन्धो न भवतीति फलितम् । तत्र-बाह्याभ्यन्तरकारणवशात् स्नेहपर्यायाविर्भावात् स्निह्यते स्मेति स्निग्धः, एवम्-रूक्षणाद्, स्निग्धश्च-रूक्षश्चेति स्निग्धरूक्षौ तयोर्भावः स्निग्धरूक्षत्वम् । स्निग्धत्वञ्च-चिक्कणगुण लक्षणः पर्यायः, तद्विपरीतपरिणामो रूक्षत्वम्, विमात्रयोः-असमानमात्राविशिष्टयोः स्निग्धरूक्षयोः परमाण्वोः परस्परसंश्लेषलक्षणे एकत्वपरिणामात्मके बन्धे सति घणुकस्कन्धो जायते ।
तत्त्वार्थदीपिका---पहले कहा जा चुका है कि भेद और संधात रूप पृथक्त्व से परमा णुपुद्गलों का स्कंध रूप में उत्पाद होता है। तो क्या दों परमाणुओं का संयोग होने से ही द्वयणुक आदि स्कंध उत्पन्न हो जाते हैं अथवा अन्य किसी विशेषता से उत्पन्न होते है ? ऐसी शंका होने पर एकत्व परिणाम रूप बन्ध से संधात (स्कंध) की निष्पत्ति होती है, ऐसा प्रतिपादन किया गया है । इसमें भी यह आशंका उत्पन्न होती है कि पुद्गल जाती की समानता होने पर भी किन्हीं पुद्गलों का बन्ध होता है और किन्हीं का क्यों बन्ध नहीं होता है ? इस आशंका का समाधान करने के लिए कहते हैं
विसदृश अंश वाले स्निग्ध और रूक्ष पुद्गलों का बंध होता है । इससे यह फलित हुआ कि यद्यपि समस्त पुद्गलों में पुद्गलपन समान है तथापि अनन्त पर्यायों वाले किन्हीं पुद्गलों का परस्पर विलक्षण परिणाम से प्राप्त स्निग्धत्व और रूक्षत्व के सामर्थ्य से बन्ध होता है । जिन पुद्गलों में पूर्वोक्त प्रकार का परिणमन नहीं होता, उनका बन्ध नहीं होता ।
___ जिस पुद्गल में बाह्य और आभ्यन्तर कारणों का संयोग मिलने पर स्नेह पर्याय प्रकट हो जाता है, वह स्निग्धपुद्गल कहलाता है । वह चिकना होता है। उससे विपरीत परिणाम को रूक्षत्व कहते हैं । विमात्र का मतलब है--असमान अंशों वाले । इस प्रकार असमान अंश वाले स्निग्ध और रूक्ष दो परमाणुओं का परस्पर संश्लेष रूप एकत्व परिणामात्मक बन्ध होने पर द्वयणुक स्कन्ध उत्पन्न होता है ।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧