Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ. २. सू. २२ परमाणुपुद्गलानामुत्पत्तिहेतुकथनम् २८३ तेषामेकत्वलक्षणसंघातात् , भेदसंघाताद्वा--एकत्वपृथक्त्वलक्षणात् । अथ स्नेहरूक्षताविगमात्स्थितिक्षयाद्-द्रव्यान्तरेण भेदात् , स्वभावगत्या च द्यणुकादिस्कन्धभेदादुत्पद्यमानः परमाणुः कार्यमपि भवति, ड्यणुकादिस्कन्धेषु च संघातपरिणता सत्या न परिमाणभावेन परमाणोरवस्थानं भवति, अपितु--स्थूलद्रव्यत्वेनैव तस्य तत्राऽवस्थानं भवति, पूर्वपरिणामोपमर्देनोत्तरपरिणामभवनम् । तस्मिंश्चोत्तरपरिणामे पूर्वपरिणामस्याऽसम्भवात्, परिणामस्य भवान्तरापत्तिफलत्वात् । तस्मात्—सूक्ष्मपरिणामाद् बादरपरिणामस्याऽर्थान्तरत्वात् तत्र न परमाणुपरिणामोऽस्ति,
यथा-गुडोदकधातकीद्रव्यसंयोगविशेषात् सरकद्रव्यपरिणामो जायते, तदेव खलु तत्तद्द्रव्यत्रयसंयोगविशेषात् कालान्तरापेक्षमन्यदेव भावान्तरं भवति । यत्र तेषां भेदावगमो दुःशको भवति, अथ च तानि द्रव्याणि विना सपणामो नास्ति-नैव वा-तानि द्रव्याणि तदानीं प्राक्तनरूपेण सन्ति । यदिच-तदानीं तानि द्रव्याणि प्राक्तनरूपेणैव तत्र भवेयुः तदा पूर्वकालवत् तस्मिन्कालेऽपि तत्परिणामाऽसम्भवएव स्यात् । तथाच-बादरपरिणामपरिणतमहाद्रव्ये परमाणवः स्वेन रूपेण न सन्ति परिणामान्तरापन्नत्वात् मदिरापरिणतौ गुडादिवत् । एवञ्च-परमाणुव्यणुकादीनामल्पं कारणमेवेत्येवकारप्रयोगो नोचितः ? इतिचेन्मैवम्---
मगर परमाणुओं की उत्पत्ति संघात से नहीं, पृथक्त्व से हो होती है ।
शंका-स्निग्धता और रूक्षता के हट जाने पर स्थिति का क्षय होने से जब किसी द्रव्य से भेद होता है और स्वभाव गति से द्वयणुक आदि स्कन्धों का भेद होता है, उस समय उत्पन्न होने वाला परमाणु कार्य होना चाहिए। जब परमाणु द्वयणुक आदि में मिला हुआ था, उस समय वह परमाणु के रूप में नहीं था बल्कि स्कन्ध के रूप में था । जब उसके स्कन्ध रूप पूर्वपर्याय का विनाश हुआ तभी उसमें परमाणु रूप उत्तर पर्याय का उत्पाद हुआ । उत्तरकालीन पर्याय में पूर्व कालीन पर्याय का रहना संभव नहीं है । क्यों कि परिणाम का अर्थ ही है भवान्तर का होना । अतः सूक्ष्म परिणाम से बादरपरिणाम भिन्न है; अतएव स्कन्ध परिणाम में परमाणु परिणाम नहीं होता ।
जैसे गुड़, जल और धातकी पुष्प के संयोग से सरक द्रव्य रूप परिणमन उत्पन्न होता है । वही विभिन्न द्रव्यों के संयोग विशेष से कालान्तर में एक नवीन रूप धारण कर लेता है, जिसमें उनके भेद को समझना कठिन हो जाता है। मगर उन द्रव्यों के बिना वह परिणाम नहीं होता और न वे द्रव्य उस समय अपने पूर्व रूप में रहते हैं। अगर उस समय भी वे द्रव्य अपने पूर्व रूप में ही रहें तो पूर्व काल के समान उस काल में भी वह परिणाम नहीं होना चाहिए ।
इस प्रकार बादर परिणाम के रूप में परिणत महाद्रव्य में परमाणु अपने रूप में अर्थात् परमाणु के रूप में नहीं होते। क्योंकि वे दूसरे परिणाम में परिणत होते हैं, जैसे मदिरा पर्याय
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧