Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
तत्त्वार्थसूत्रे तत्त्वार्थदीपिका—“अथ जीवानां कियतिक्षेत्रेऽवगाहो भवतीति जिज्ञासायामाह"जीवाणं लोगस्स असंखेज्जइभागे, पदीयोविव पएस-संकोचविगासेहि-" इति ।
जीवाना लोकस्य लोकाकाशप्रदेशस्याऽसंख्येयभागेऽवगाहोऽवस्थानरूपो भवति. । तत्रकदाचिद् लोकाकाशैकप्रदेशरूपाऽसंख्येयभागे, कदाचिद्-द्विप्रदेशादिरूपाऽसंख्येयभागे, कदाचित्-त्रिप्रदेशरूपाऽसंख्येयभागे, इत्यादिरीत्या जीवानामवगाहो भवति. ।
अथ तुल्यपरिमाणानां पटादीनामवगाहे वैषम्यस्याऽदृष्टत्वात् कथं जीवानां तुल्यप्रदेशत्वेऽपि कस्यचिदेकस्मिन् लोकाकाशाऽसंख्येयभागे कस्यचित् द्वयोरसंख्येयभागयोः, कस्यचित्-त्रिषु असंख्येयभागेषु अवगाहः, इत्येवं वैषम्यमित्याशङ्कायामाह—“पदीवोविव-" इत्यादि ।।
प्रदीपस्येव जीवस्य प्रदेशानां सङ्कोच-विकाशाभ्यां क्वचिदल्पप्रदेशाऽवगाहित्वम्. क्वचिच्च-बहुप्रदेशावगाहित्वं भवति ॥१३॥
तत्वार्थनियुक्तिः--पूर्वसूत्रे पुद्गलानामवगाहः प्ररूपितः सम्प्रति-जीवानामवगाहप्रकारं प्ररूपयति-"जीवाणं-"इत्यादि । जीवानां लोकाकाशस्याऽऽसंख्येयभागादिषु-अवगाहो भवति । तत्र—लोकाकाशस्यैकप्रदेशरूपाऽसंख्येयभागे एको जीवोऽवगाहते अर्थात् -- लोकाकाशस्याऽसंख्येया भागाः क्रि' न्ते तेषां मध्ये एकस्मिन् भागे एको जीवोऽवतिष्ठते ।
मूलसूत्रार्थ “जीवाणं लोगस्स" इत्यादि । सूत्र-१३" जीवद्रव्य का अवगाह लोक के असंख्यातवें भागमें होता है । जैसे दीपक का प्रकाश फैल जाता है, और सिकुड़ भी जाता है, उसी प्रकार जीवप्रदेश भो फैल जाते और सिकुड़ जाते हैं ॥१३॥
तत्त्वार्थदीपिका-जीवों का अवगाह कितने क्षेत्र में होता है, इस प्रकार की जिज्ञासा होने पर कहते हैं
जीवों का अवगाह लोकाकाश के असंख्यात ३ भाग में होता है । कदाचित् लोकाकाश के एक असंख्यात वें भागमें, कदाचित् दो असंख्यात भागों में और कदाचित् तीन असंख्यात भामों में अवगोह होता ।
शंका-समान परिमाण वाले पर आदि के अवगाह में विषमता नहीं देखी जाती तो फिर सब जीवों के प्रदेशों में तुल्यता होने पर भी किसी जीव की अवगाहना लोक के एक असंख्यात वें भाग में, किसी की दो असंख्यात भागों में, किसी की • तीन असंख्यात भागों में अवगाहना हो, इस विषमता का क्या कारण है ?
___ समाधान-दीपक के प्रकाश के समान जीव के प्रदेशों में संकोच और विस्तार होता है, अतः कोई जीव थोड़े प्रदेशों में और कोई बहुत प्रदेशों में अवगाहता है ॥१३॥
तत्त्वार्थनियुक्ति-पूर्वसूत्र में पुद्गलों का अवगाहन प्रकार प्रदर्शित करके अब जीवों की अवगाहना का निरूपण करते हैं
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧