Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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तत्त्वार्थसूत्रे अन्त्य–मापेक्षिकञ्चेति । तत्राऽन्त्यं बादरत्वं विश्वव्यापिनो महास्कन्धस्य भवति, आपेक्षिकञ्च बादरत्वं बदरामलकबिल्वतालफलादिषु विज्ञेयम्, इत्येवं द्विविधमपि बादरत्वम्पुद्गलसम्बन्धित्वात् पौद्गलिकमुच्यते । संस्थानं पुनराकृतिरूपम्, तदपि द्विविधम्, इत्थंस्थलक्षणम्-अनित्थंस्थलक्षणच. अनेन प्रकारेणेति-इत्थं लक्षणम् । वर्तुलत्र्यसूचतुरस्रा-ऽऽयतपरिमण्डलादीनामित्थंस्थलक्षणं संस्थानं भवति. । तत्र-वतुलं दर्पणादिसंस्थानभवगन्तव्यम् । इत्थं प्रकारकमिदं संस्थानमित्येवं निरूपणयोग्यमित्थंस्थलक्षणं संस्थानमुच्यते । अनित्थंस्थलक्षणं संस्थानं मेधादीनामनेकविधं भवति, । इत्थंप्रकारकमिदं संस्थानम् इत्येव निरूपयितुमशक्यम् अनित्थंस्थलक्षणं संस्थानमुच्यते मेघादीनामित्थमेव संस्थानमिति न वक्तुं शक्यते, एतद् द्वयमपि संस्थानं पौद्गलिक भवति ।
भेदाःपुनः-उत्कर१-चूर्ण२-खण्ड ३--चूर्णिका४-प्रतर भेदात् पञ्चविधाःसन्ति तत्र-क्रकचादिभिःकाष्ठादीनामुत्करणमुत्कर उच्यते । गोधूम-यवादीनां मक्तुकणिकादिरूपश्चूर्णो व्यपदिश्यते । घटपटादीनां कपाल-शकलादिःखण्ड उच्यते । माष-मुद्गलादीनां प्रतनुरूपा चूर्णिका व्यपदिश्यते । अभ्रपटलादीनां प्रतरो भवति ।
इत्येते शब्दादयः पुद्गलद्रव्यविकारा भवन्तीति शब्दादीनां पुद्गलद्रव्यपरिणामत्वं सिद्धम् । सूत्रस्थचकारेण प्रेरणाऽमिधातादीनां पुद्गलद्रव्यपरिणामानामागमोक्तानां समुच्चयोऽवगन्तव्यः । तथाचआपेक्षिक बेल, आमला बोर आदि में । यह दोनों तरह का सूक्ष्मत्व पुदगल का ही विकार है।
इसी प्रकार बादरत्व अर्थात् स्थूलता के भो दो भेद हैं-अन्त्य और आपेक्षिक । अन्त्य बादरत्व समग्र लोकव्यापी महास्कंध में पाया जाता है, आपेक्षिक बादरत्व बोर, आमला, बिल्व, तालफल आदि में होता है । यह दोनों प्रकार का बादरत्व भी पौद्गलिक है।
आकृति या आकार को संस्थान कहते हैं। इसके भी दो भेद हैं-इत्थंस्थ और अनित्थंस्थ। जिस आकार के विषय में कहा जा सके कि यह ऐसा है वह इत्थंस्थ आकार कहलाता है। वर्तुल , त्रिकोण चतुष्कोण दीर्घ, परिमण्डल आदि आकार इत्थस्थ संस्थान के अन्तर्गत हैं । जिस आकार में किसी प्रकार की नियतता न हो और जिसे पूर्वोक्त किसी आकार की संज्ञा न दी जा सके, वह अनित्यंस्थ आकार कहलाता है यह मेध आदि में अनेक प्रकार से पाया जाता है। यह दोनों प्रकार के संस्थान पौद्गलिक हैं।
भेद के छह भेद हैं-(१) उत्कर भेद (२) चूर्णभेद (३) खण्डभेद (४) चूर्णिका भेद और (५) प्रतर भेद करौंत आदि से काष्ट आदि को चीरना उत्कर भेद है । गेहूँ जो आदि को पीसकर आटा बना लेना चूर्ण भेद है । घट पट आदि के टुकड़े-टुकड़े होना खण्डभेद है । उड़द मूंग आदि का बारीक चूरा होना चूर्णिका भेद है । अभ्रपटल आदि के तह के तह पृथक् होना प्रतर भेद है।
इस प्रकार शब्द आदि पूर्वोक्त सभी पुद्गलद्रव्य के विकार हैं । सूत्र में प्रयुक्त 'च' शब्द से प्रेरणा, अभिघात आदि आगमोक्त पुद्गल द्रव्य के परिणामों को ग्रहण कर लेना चाहिए।
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧