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दीपिकानियुक्तिश्च अ० २ सू. १५
धर्माधर्माकाशानां लक्षणानि २२५ पित्वं निश्चीयते । एवम् लोकाकाशे एव जीवानामजीवानाञ्च धर्माधर्मपुद्गलादीनां सत्त्वेन अलोकाकाशस्य तु शून्यत्वात्तत्रावगाहो नोपपद्यते, इतिरीत्या त्रयाणां धर्माधर्माकाशानामसाधारणं कार्य सूत्रेण दर्शयितुमाह - "गइ ठिइ ओगाहाणं निमित्ता धम्माधम्मागासा-" इति ।।
गतिस्थित्यवगाहानां निमित्तानि खलु यथासंख्यं धर्माधर्माकाशानि भवन्ति । तत्र देशान्तरप्राप्तिहेतुः परिणामो गतिः, तविपरीतः परिणामः स्थितिः, अवकाशदानहेतुः परिणामः अबगाह उच्यते । तथाच-देशान्तरप्राप्तिपरिणामलक्षणगत्याविष्टानां जीवपुद्गलादिद्रव्याणां गतिनिमित्तं धर्मो व्यपदिश्यते ।
___ एवं देशान्तरप्राप्तिविपरीतपरिणामलक्षणस्थित्याविष्टानां जीवपुद्गलादिद्रव्याणां स्थितिनिमित्तमधर्म उच्यते । एवं जीवपुद्गलादीनामवगाहिनां द्रव्याणामवकाशदानपरिणामलक्षणावगाहनिमित्तमाकाशं व्यवहियते, एतावता गतिपरिणामिनां जीवपुद्गलादीनां गत्युपग्रहे कर्तव्ये धर्मास्तिकायस्योपकारोऽवगन्तव्यः जलस्येव मत्स्यादिगमने ।
एवं स्थितिपरिणामिनां जीवपुद्गलादीनां स्थित्युपग्रहे कर्त्तव्येऽधर्मास्तिकायस्योपकारो भूभ्यादेरिवाश्वादिस्थितौ बोध्यः । एवं जीवपुद्गलादीनामवगाहिनामवकाशदानलक्षणेऽवगाहे कर्त्तव्ये आकाशस्योपकारो द्रष्टव्य इति फलितम् , तथाच-गतिमतां गते रुपग्रहे धर्मस्योपकारः, स्थिति
इस प्रकार लोक में ही जीवों का तथा धर्म, अधर्म, पुद्गल आदि अजीव द्रव्यों का अस्तित्व है। अलोकाकाश सूना है, वहाँ किसी अन्य द्रव्य का अवगाह नहीं है । इस प्रकार से धर्म, अधर्म और आकाश द्रव्य का असाधारण कार्य बतलाने के लिए कहते हैं-गति, स्थिति और अवगाहना के निमित्तकारण धर्म, अधर्म और आकाशद्रव्य हैं।
___ एक देश से दूसरे देश में प्राप्ति रूप परिणाम को गति कहते हैं। उससे विपरीत परिणाम को स्थिति कहते हैं। अवकाश देने के कारण रूप परिणाम को अवगाह कहा गया है। इस प्रकार देशान्तर प्राप्ति रूप परिणाम वाले जीवों और पुद्गलों की गति में जो निमित्त होता है, वह धर्मद्रव्य कहलाता है।
इसी प्रकार देशान्तर प्राप्ति से विपरीत परिणाम रूप स्थिति बाले जीव एवं पुद्गल द्रव्यों की स्थिति का जो निमित्त है वह अधर्मास्तिकाय कहलाता है। जीव पुद्गल आदि अवगाहन करने वाले द्रव्यों के अवकाशदान परिणाम रूप अवगाह में जो निमित्तकारण हो, वह आकाश कहा गया है। इससे गतिपरिणमन वाले जीवों और पुद्गलों की गति में सहायता पहुँचाना धर्मद्रव्य का उपकार है, जैसे मत्स्य आदि के गमन में जल सहायता पहुँचाता है। इसी प्रकार स्वयं स्थिति में परिणत होने वाले जीवों और पुद्गलों की स्थिति में सहायक होना अधर्मद्रव्य का उपकार है, जैसे अश्व आदि की स्थिति में भूमि आदि निमित्त होतेहैं।
इसी प्रकार अवगाहन करने वाले जीवों, पुद्गलों आदि के अवकाशदान रूप अबगाह करने में आकाश का उपकार समझ लेना चाहिए, यह फलित हुआ । इस प्रकार गति
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧