Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानियुक्तिश्च अ. २. १२
पुद्गलानां लोकाकाशेऽवगाहनिरूपणम् २१५ विरुध्यते । यथा एकापवरकेऽनेकदीपप्रकाशाऽवस्थानं प्रत्यक्षसिद्धत्वात् अविरुद्धं भवति, तद्वदेव प्रकृतेऽपि प्रत्येतव्यम्, आगमप्रामाण्यादपि तथाऽध्यवसेयम् ।।
एवञ्च-परमाणुस्तावत् अविद्यमानद्रव्यान्तरप्रदेशत्व -अप्रदेश उच्यते स्वयंतु-प्रदेशात्मक एव परमाणुरवसेयः, प्रचयबिशेषात् । संख्येयपरमाणुघटितः पुद्गलस्कन्धः संख्येयप्रदेशी भवति एवम्-प्रचयविशेषादेवाऽऽसंख्येयपरमाणुधटित पुद्गलस्कन्धः असंख्येयदेशो भवति । एवम्-अनन्तपरमाणुघटितः पुद्गलम्कन्धोऽनन्तप्रदेशो व्यपदिश्यते. ।।
तत्र-परमाणोः प्रदेशान्तराभावादेकस्मिन्नेव लोकाकाशप्रदेशेऽवगाहो भवति, द्वयणुकस्य तु-परमाणुद्वयात्मकतया बद्धस्य तस्यैकस्मिन्नाकाशप्रदेशेऽवगाहः अबद्धस्य पुनः परमाणुद्वयरूपस्य द्वयोराकाशप्रदेशयोरवगाहः, एवम्-त्र्यणुकस्य परमाणुत्रयात्मकत्वात् बद्धस्य तस्य स्कन्धरूपस्यैकस्मिन्नाकाशप्रदेशेऽवगाहः अबद्धस्य तु द्वयोस्त्रिषु चाकशप्रदेशेषु-अवगाहो भवतीति भावः । एवम्-चतुरणुकादीनां बद्धानामबद्धानाञ्च यथायोग्यं संख्येयाऽसंख्येयप्रदेशस्यैकादिषु संख्येयेषु-असंख्येयेषु चाऽऽकाशप्रदेशेष्ववगाहो बोध्यः, तेषामनन्त प्रदेशस्यापि लोकाकाशस्याऽनन्तप्रदेशत्वाभावाद् असंख्येयप्रदेशेष्वेवावगाहो भवतीति फलितम्. ॥१२॥ मूलसूत्रम्—'जीवाणं लोगस्स असंखेज्जइभागे' पदीयोविव पएस-संकोचविगासेहिं १३
छाया --"जीवानां लोकस्याऽसंख्येयभागे' प्रदीप इव प्रदेश-संकोचविकासाभ्योम कमरे में अनेक दीपकों के प्रकाश का रहना प्रत्यक्ष से सिद्ध है, उसी प्रकार एक ही आकाशप्रदेश में अनेक परमाणु समूह रूप स्कन्ध भी रह सकता है । इसके अतिरिक्त आगम की प्रमाणता से भी इसे स्वीकार करना चाहिए ।
निर्विभाग होने के कारण परमाणु प्रदेशविहीन होता है, उसमें कोई प्रदेश नहीं होता वह स्वतन्त्र और अखण्ड होता है । संख्यात परमाणुओं के प्रचय से संख्यातप्रदेशी स्कंध बनता है, असंख्यात परमाणुओं के मेल से असंख्यातप्रदेशी स्कंध का निर्माण होता है और अनन्त प्रदेशी स्कन्ध की उत्पत्ति होती है ।
परमाणु में प्रदेशों का अभाव होने से वह आकाश के एक ही प्रदेश में अवस्थित होता है । दो परमाणुओं से बना द्वयणुक यदि बद्ध हो तो एक ही आकाशप्रदेश में समा जाता है ।
और यदि बद्ध न हो तो दो आकाशप्रदेशों में समाता है । इसी प्रकार तीन परमाणुओं से निर्मित त्र्यणुक यदि बद्ध हुआ तो एक ही आकाशप्रदेश में रह सकता है और यदि अबद्ध हुआ तो दो या तीन प्रदेशों को घेरता है । इसी प्रकार बद्ध और अबद्ध चतुरणुक की आदि की अवगाहना एक, दो, आदि संख्यात-असंख्यात प्रदेशों में यथायोग्य समझ लेना चाहिए । हाँ, इतना स्मरण रखना चाहिए कि लोकाकाश के प्रदेश असंख्यात ही हैं, अनन्त नहीं; अतएव अनन्त एवं अनन्तानन्त प्रदेश वाला स्कंध भी एक, संख्यात या असंख्यात आकाशप्रदेशों में हो अवगाढ़ होता है । यह पुद्गल के परिणमन की विचित्रता है ॥१२॥
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર: ૧