Book Title: Tattvartha Sutra Part 01 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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दीपिकानिर्युक्तिश्च अ ०२ सू० १०
धर्मादीनामवगाहादिप्रदेशनिरूपणम् २०७
तत्वार्थदीपिका -- पूर्वोक्तानां धर्मादिद्रव्याणामवगाहनम् अवगाहः प्रवेशः प्रतिष्ठा - व्यापनं लोकाकाशे भवति, न ततो बहिरलोकाकाशे भवति । तत्र लोक्यन्ते धर्मादयः पदार्था यस्मिन् स लोक उच्यते, तथाविधस्य लोकस्य सम्बन्धी आकाशो लोकाकाश उच्यते ॥ १० ॥
तत्वार्थनिर्युक्तिः -- अवगाहिनामनुप्रवेशवतां धर्मादीनां द्रव्याणामवगाहः प्रवेशः पुद्गलादीनां प्रतिष्ठा लोकाकाशे धर्माधर्माऽवगाढे व्योम्नि भवति, धर्माऽधर्मयोश्चाऽनादिकालीनोऽवगाहआकाशे वर्तते परम्परा श् लेषपरिणामेन तथा सन्निवेशात्
तदन्यस्मिन्नाकाशे अलोकाकाशे जीवादीनां नास्त्यवगाहः, तत्र धर्माधर्मविरहात्, तयोरेव - धर्माऽधर्मयोर्गतिस्थित्युपग्रहकारित्वात् । अथाऽलोकाकाशे धर्माधर्मै गति स्थित्युपग्रहकारिणौ कथं न वर्तेते इतिचेदुच्यते
तयोः स्वभावएवैतादृशो विद्यते यत् अलोकाकाशे तौ न तिष्ठतः, स्वभावे च कस्यापि वस्तुनः पर्यनुयोगो न भवति तस्माद् धर्मादीनां लोकाकाशे एवाऽवगाहो भवतीत्युक्तम् ।
अथ यदि धर्मादीनां लोकाकाशेऽवगाहात् लोकाकाशमाधारो भवति, तर्हि लोकाकाशस्य क आधारः इतिचेन्मैवम् आकाशस्य स्वप्रतिष्ठत्वात् तस्याऽन्यः आधारो नास्ति । अथ यथाssकाश
तत्वार्थदीपिका - पूर्वोक्त धर्म आदि द्रव्यों का अवगाहन अवगाह, प्रवेश, प्रतिष्ठा या व्यापना लोकाकाश में ही होती है, लोकाकाश से बाहर अलोकाकाश में नहीं होती । जहाँ धर्म आदि पदार्थ देखे जाते हैं, वह लोक कहलाता है और लोक संबंधी आकाश लोकाकाश कहा जाता है ॥ १० ॥
तत्वार्थनिर्युक्ति-धर्म आदि द्रव्यो का अवगाह या स्थिति लोकाकाश में है । वह लोकाEra धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय से व्याप्त है । ये दोनों द्रव्य अनादि काल से परस्पर मिले हु लोक में अवस्थित हैं । पुद्गलों और जीवों की अवगाहना भी लोकाकाश में अनादि कालीन है, किन्तु इनमें गतिक्रिया होने से ये धर्म अधर्म की तरह अवस्थित नहीं है । इनकी अवगाहना कभी किन्हीं अकाशप्रदेशों के साथ होती है और कभी किन्ही अन्य प्रदेशों के साथ । लोक से भिन्न अलोकाकाश में जीवादि नहीं होते, क्योंकि वहाँ अधर्म द्रव्य नहीं हैं और वही गति तथा स्थिति के निमित्त होते हैं ।
शंका-- अलोकाकाश में गति का उपग्राहक धर्म और स्थिति का उपग्राहक अधर्म क्यों नहीं है ?
समाधान - धर्म और अधर्म का स्वभाव ही ऐसा है कि वे अलोकाकाश में नहीं रहते । स्वभाव के विषय में प्रश्न की कोई गुंजाइस ही नहीं होती । इसीसे कहा है कि धर्म आदि का अवगाह लोकाकाश में ही है ।
शंका - धर्मादि द्रव्य का लोकाकाश में अवगाह होने से यदि लोकाकाश धर्मादि का अधार है तो लोकाकाश का आधार क्या है ?
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧