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तत्त्वार्थसूत्रे
तत्र भवनपति–व्यन्तर-ज्योतिष्क सौधर्मेशानेषु - उपपाततो वेदद्वयमपि भवति । दु पुरुषवेद एव भवति, नाऽन्यः । अथ देवानां नपुंसकवेदः कथं न भवतीति चेत्
उच्यते तेषां हि देवानां चतुर्विधानामपि शुभगत्यादिनामगोत्रवेद्यायुष्कापेक्षमोहोदयादभिलषितप्रीतिजनकं मायार्जवोपचितं करीषतृणपूलवह्नितुल्यं स्त्रीवेदनीयमेकं पुंवेदनीयमधिकं पूर्वबद्धवि काचितमुदयप्राप्तं भवति । न तु तद्भिन्नं नपुंसक वेदनीयं कदापि पूर्वभवे नपुंसक वेदमोहकर्मणोऽबद्धत्वात् ।
अत्र च स्त्रीवेदो नपुंसकवेदापेक्षया शुभउच्यते, न तु वस्तुतः शुभ एवेति भावः तथा चोक्तं समवायङ्गसूत्रे "असुरकुमारा णं भंते! किं इत्थीवेया- पुरिसवेया पुंसगवेया ? गोयमा ! इत्थीवेया - पुरिसवेया, णो णपुंसगवेया थणियकुमारा, जहाअसुरकुमारा तहा - वाणमंतरा जोइसियवेमाणियावि" - इति । असुरकुमाराः खलु भदन्त किं स्त्रीवेदाः पुरुषवेदाः नपुंसकवेदा:-: गौतम ! स्त्रीवेदाः पुरुषवेदाः नो नपुंसकवेदाः । स्तनितकुमाराः, यथा - असुरकुमाराः - तथा वानव्यन्तराः ज्योतिष्कवैमानिका अपि इति ॥ ३८ ॥ मूलसूत्रम् - "नारगे संमुच्छिमे य नपुंसगवेए - " ॥३९॥
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छाया - "नारकः सम्मूच्छिमश्च नपुंसकवेदः – ” ॥३९॥
तत्त्वार्थदीपिका - पूर्वसूत्रे देवानां चतुर्निकायानामपि भवनपतिवानव्यन्तर – ज्योतिष्कवैमानिकानां पुंस्त्ववेदः स्त्रीत्ववेदश्च यथायोग्यं प्ररूपितः सम्प्रति - नारकाणां सम्मूच्छिमानां च जीवानां केवलं नपुंसकत्ववेदो भवतीति प्ररूपयितुमाह-
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भवनपति, व्यन्तर ज्योतिष्क, सौधर्म ऐशान देवलोक में उपपात की अपेक्षा से दोनों वेद होते हैं । उनके आगे केवल पुरुषवेद ही होता है। देवों में नपुंसकवेद क्यों नहीं होता ? इस प्रश्न का समाधान यह है कि चारों प्रकार के देवों में शुभगति आदि नाम गोत्र वेध आयुष्क की अपेक्षा रखने वाले मोहकर्म के उदय से अभिलषित प्रीतिजनक, मायाआर्जव से उपचित करीष की अग्नि के समान स्त्रीवेदनीय और घास की पूली की आग के समान पुरुषवेदनीय, जो पहले निकाचित रूप में बाँधा था, उदय को प्राप्त होता है । इन दोनों से भिन्न नपुंसक वेदनीय का कदापि उदय नहीं होता, क्योंकि पूर्वभव में उसका बंध नहीं किया था ।
यहाँ नपुंसक वेद की अपेक्षा स्त्रीवेद शुभ कहलाता है, वास्तव में वह शुभ है, ऐसा नहीं समझना चाहिए । समवायांगसूत्र में कहा है
पुरुषवेदी होते हैं या नपुंसकवेदी होते हैं ? नपुंसकवेदी नहीं होते । स्तनितकुमारों विषय में कहा है, एवं वैसा ही
हैं,
प्रश्न – भगवन् ! क्या असुरकुमार स्त्रीवेदी होते हैं, उत्तर -- गौतम ! स्त्रीवेदी और पुरुषवेदी होते तक ऐसा ही कहना चाहिए । जैसा असुरकुमारों के वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के संबन्ध में भी समझना चाहिए | ॥३८॥
શ્રી તત્વાર્થ સૂત્ર : ૧