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श्रमण-सूत्र
___ मूल-सूत्र में 'उसिंग' शब्द आया है, उसका अर्थ चींटियों का नाल या चींटियों का बिल किया है । प्राचार्य हरिभद्र 'गर्दभ की श्राकृति के जीव विशेष अर्थ भी करते हैं । 'उत्तिंगा गर्दभाकृतयो जीवा, कीटिकानगराणि वा ।' प्राचार्य जिनदास महत्तर के उल्लेख से मालूम होता है कि यह भूमि में गडदा करने वाला जीव है, अतः सम्भव है, यह अाज की भाषा में 'घुग्गू' हो । 'उत्तिंगा नाम गदभाकिती जीवा, भूमीए खड्डयं करेंति'-श्रावश्यक चूर्णि । ____ 'दग-मट्टी' का अर्थ जल और पृथ्वी किया है। प्राचार्य हरिभद्र भी उक्त-सूत्र के दोनों शब्दों को भिन्न-भिन्न मान कर जल और पृथ्वी अर्थ करते हैं । परन्तु वे 'दग-मट्टि' शब्द को एक शब्द भी मानते हैं और उसका अर्थ करते हैं---'चिखल अर्थात् कीचड़ ।' 'दकमृत्तिका चिक्खलं, अथवा दकग्रहणादपकायः, मृत्तिकाग्रहणात्पृथ्वीकायः ।।
आचार्य हरिभद्र ने अभिहया का अर्थ किया है.---' अभिमुखागता हता चरणेन घट्टिताः, उत्क्षिप्य तिता वा।' इसका भाव है-'पैर से ठोकर लगाना, या उठाकर फेक देना।
'वत्तिया' का अर्थ-पुञ्ज बनाना भी किया है। 'वर्तिताः पुजी कृताः, धूल्या वा स्थगिताः' प्राचार्य हरिभद्र ।
सङ्घहिता का अर्थ छूना किया है, जिसके लिए प्राचार्य हरिभद्र का आधार है । 'सङ्घट्टिता मनाक-स्पृष्टाः।' __ ऊपर के शब्दों के सम्बन्ध में प्राचार्य हरिभद्र के जिस मत का उल्लेख किया गया है, ठीक वैसा ही प्राचार्य जिनदास महत्तर का भी मत है । इसके लिए आवश्यक चूणि द्रष्टव्य है ।
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