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प्रतिज्ञा-सूत्र
तस्स धम्मस्स अब्भुट्टिोमि आराहणाए विरोमि विराहणाए। असंजमं परित्राणामि संजमं उवसंपज्जामि, अभं परित्राणामि बंभ उवसंपज्जामि, अकप्पं परिआणामि कपं उपसंपज्जामि, अन्नाणं परित्राणामि नाणं उवसंपज्जामि, अकिरियं' परियाणामि किरियं उपसंपज्जामि, मिच्छत्तं परित्राणामि सम्मत्तं उपसंपज्जामिरे अबोहिं परिणामि बोहि उवसंपज्जामि, अमग्गं परित्राणामि, मग्गं उवसंपज्जामि । जं. संभरामि, जं च न संभरामि, जं पडिक्कमामि, जं च न पडिक्कमामि, तस्स सव्वस्स देवसियस्स अइयारस्स पडिक्कमामि ।
१-प्राचार्य जिनदास महत्तर पहले 'मिच्छत्त परित्राणामि सम्मत्त उपस पजामि' कहते हैं, और बाद में 'अकिरियं परियाणामि किरियं उवस पजामि ।'
२-प्राचार्य जिनदास की अावश्यक चूणि में 'अबोहिं परित्राणामि, बोहिं उवस पजामि । अमग्गं परियाणामि मग्गं उवस पजामि' यह अंश नहीं है।
३---श्रावश्यक चूर्णि में 'जं पडिक्कमामि जं च न पडिक्कमामि' पहले है और बाद में 'जं सभरामि जं च न संभरामि' है ।
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