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शेष सूत्र
भावार्थ राग-द्वेष के जीतने वाले श्री अरिहंत भगवान मेरे देव हैं, जीवनपर्यन्त संयम की साधना करने वाले सच्चे साधू मेरे गुरु हैं, श्री जिनेश्वर देव का बताया हुश्रा अहिंसा सत्य आदि ही मेरा धर्म है यह देव, गुरु धर्म पर श्रद्धा स्वरूप सम्यक्त्व बत मैंने यावजीवन के लिए ग्रहण किया।
गुरु गुणस्मरण सूत्र पंचिंदिय-संवरणो,
तह नवविह-बंभचेर-गुत्ति-धरो। घउविह-कसाय-मुक्को,
इअ अट्ठारस-गुणेहिं संजुत्तो॥१॥ पंच - महन्वय - जुत्तो,
पंचविहायार - पालण - समत्थी। च - समित्रो तिगुत्तो, छत्तीसगुणो गुरू मज्झ ॥२॥
शब्दार्थ पंचिदिय - पांच इन्द्रियों को गुत्तिधरो-गुप्तियों को धारण संवरणो वश में करने वाले
करने वाले . सह = तथा
चउविह = चार प्रकार के नव विह बंभधेर = नब प्रकार के कसायमुक्को - कषाय से मुक्त
६. हाचर्य की इअ-इन
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