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बोल-संग्रह
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उपर्युक्त ४७ दोषों का वर्णन पिण्ड नियुक्ति, प्रवचनसार, आवश्यक आदि में आता है । प्रत्येक टीकाकार कुछ अर्थभेद की भी सूचना देते हैं । यहाँ सामान्यतया प्रचलित ग्रंथों का ही उल्लेख किया गया है ।
( १७ ) चरण - सप्तति
चय समणधम्म,
संजम व्यावच्चं च बंभगुती ओ ।
नाणाइतियं तवं कोह - निगहाई
( १८ ) करण-सप्तति
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पिंड विसोही समिई,
पाँच महाव्रत, क्षमा आदि दश श्रमण-धर्म, सतरह प्रकार का संयम, दश वैयावृत्य, नौ ब्रह्मचर्यं की गुप्ति, रत्न, बारह प्रकार का तप, चार कपायों का चरण है।
ज्ञान दर्शन - चारित्ररूप तीन निग्रह - - यह सत्तर प्रकार का
चरणमेयं ॥
पडिले हरण गुत्ती,
—श्रोघनियुक्ति-भाष्य
भाव पडमाय इंदियनिरोहो ।
अभिग्गहा चैव करणं तु ॥
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—श्रोघनियुक्ति भाष्य
प्रशन आदि चार प्रकार की पिण्ड विशुद्धि, पाँच प्रकार की समिति, चारह प्रकार की भावना, बारह प्रकार की भिक्षु-प्रतिमा, पाँच प्रकार