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सन्मति ज्ञान पीठ के प्रकाशन
जैनत्व की झाँकी
[ उपाध्याय पं० मुनि श्री अमरचन्द्र जी महाराज ]
इस पुस्तक में महाराज श्री जी के निबन्धों का संग्रह किया गया है । उपाध्याय श्री जी एक कुशल कवि और एक सफल समालोचक तो हैं ही ! परन्तु वे हमारी समाज के एक महान् निबन्धकार भी हैं । उनके निबन्धों में स्वाभाविक श्राकर्षण, ललित भाषा और ठोस एवं मौलिक विचार होते हैं।
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प्रस्तुत पुस्तक में जैन इतिहास, जैन-धर्म, और जैन-संस्कृति पर लिखित निबन्धों का सर्वाङ्ग सुन्दर संकलन किया गया है । निबन्धों का वर्गीकरण ऐतिहासिक, धार्मिक, सामाजिक और दार्शनिक रूपों में किया गया है। जैन धर्म क्या है ? उसकी जगत और ईश्वर के सम्बन्ध में क्या मान्यताएँ हैं और जैन-संस्कृति के मौलिक सिद्धान्त कर्मवाद और स्याद्वाद जैसे गम्भीर एवं विशद विषयों पर बड़ी सरलता से प्रकाश डाला गया है । निबन्धों की भाषा सरस एवं सुन्दर है ।
जो सज्जन जैन-धर्म की जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं उनके लिए यह पुस्तक बड़ी उपयोगी सिद्ध होगी । हमारी समाज के नवयुवक भी इस पुस्तक को पढ़कर अपने धर्म और संस्कृति पर गर्व कर सकते हैं । पुस्तक सर्वप्रकार से सुन्दर है । राजसंस्करण का मूल्य १ | ) साधारण संस्करण का मूल्य || | ) |
भक्तामर स्तोत्र
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तक संस्कृत में ही प्राप्त
[ उपाध्याय पं० मुनि श्री श्रमरचन्द्रजी महाराज ] आपको भगवान् ऋषभदेवजी की स्तुति थी । उपाध्याय श्री जी ने भक्तों की कठिनाई को दूर करने के लिए सरल एवं सरस अनुवाद और सुन्दर टिप्पणी एवं विवेचन के द्वारा भक्तामर - स्तोत्र को बहुत ही सुगम बना दिया है। संस्कृत न जानने वालों के लिए हिन्दी भक्तामर भी जोड़ दिया गया है । मूल्य । ) ।