________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
४४८
श्रमण-सूत्र
का संग्रह बहुत ही उपयोगी ढंग से किया गया है। प्रवक्ता, व्याख्यानदाता
और उपदेशकों के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। सती उज्ज्वलकुमारीजी ने जैन-संस्कृति और जैनधर्म के सिद्धान्तों को अपने प्रवचनों में अभिनव शैली से समझाने का सफल प्रयास किया है। सभी विद्वानों ने इस पुस्तक की भरसक प्रशंसा की है ।
पुस्तक में आकर्षक गेट अप, सुन्दर छपाई-सफाई और बढ़िया कागज लगाया गया है । पृष्ट संख्या ३७५ और मूल्य ३) ।
जिनेन्द्र-स्तुति [उपाध्याय पं० मुनि श्री अमरचन्द्रजी महाराज ] इस पुस्तक में भगवान् ऋषभदेव से लेकर भगवान् महावीर तक २४ तीर्थंकरों की स्तुति है | मन्दाक्रान्ता छन्द में, सरस एवं सुन्दर भाषा में स्तुति पठनीय है । पुस्तक सर्वप्रकार से सुन्दर है । मूल्य ।) ।
भारतीय संस्कृति की दो धाराएँ
[पण्डित इन्द्रचन्द्र एम० ए० वेदान्ताचार्य ] प्रस्तुत पुस्तक में विद्वान लेखक ने भारत की दो प्राचीन संस्कृतियों पर अधिकार पूर्वक विचार किया है । वे प्राचीन संस्कृतियाँ हैं-ब्राह्मण संस्कृति और श्रमण संस्कृति । पण्डित इन्द्रचन्द्र जी ने इस सम्बन्ध में जो कुछ भी लिखा है, वह सब ईमानदारी के साथ लिखा है।
विद्वान लेखक ने दोनों ही संस्कृतियों का वास्तविक चित्र खींचा है । पुस्तक सर्व साधारण के अध्ययन योग्य है । विषय गम्भीर होते हुए मी रोचक एवं पठनीय है । भाषा सरस और सुन्दर बन पड़ी है। पुस्तक सर्व प्रकार से संग्रहणीय है । मूल्य ।-)
For Private And Personal