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बोल - संग्रह
४३.३
(३) निमित्त - शुभाशुभ निमित्त बताकर श्राहार लेना । (४) आजीव - श्राहार के लिए जाति, कुल आदि बताना । ( ५ ) वनीपक - गृहस्थ की प्रशंसा करके भिक्षा लेना । ( ६ ) चिकित्सा -- औषधि आदि बताकर आहार लेना । (७) क्रोध -- क्रोध करना या शापादि का भय दिखाना । ८) मान-अपना प्रभुत्व जमाते हुए श्राहार लेना । (६) माया - छल कपट से आहार लेना । (१०) लोभ - सरस भिक्षा के लिए अधिक घूमना । (११) पूर्वपश्चात्संस्तव - दान-दाता के माता-पिता अथवा सासससुर आदि से अपना परिचय बताकर भिक्षा लेना ।
(१२) विद्या --जप आदि से सिद्ध होने वाली विद्या का प्रयोग
करना ।
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(१३) मंत्र - मंत्र - प्रयोग से आहार लेना ।
(१४) चूर्ण - चूर्ण श्रादि वशीकरण का प्रयोग करके श्राहार लेना ।
(१५) योग - सिद्धि आदि योग-विद्या का प्रदर्शन करना ।
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(१६) मूल कर्म - गर्भस्तंभ आदि के प्रयोग बताना |
उत्पादन के दोष साधु की ओर से लगते हैं । इनका निमित्त साधु ही होता है ।
ग्रहण के १० दोष
संकिय मक्खिय निक्खित्त,
अपरिणय लित्त छड़िय,
पिहिय साहरिय दायगुम्मीसे ।
एसा दोसा दस हवन्ति ||१||
A
( १ ) शङ्कित - श्रधाकर्मादि दोषों की शंका होने पर भी लेना । (२) प्रक्षित -- सचित्त का संघट्टा होने पर आहार लेना । (३) निक्षिप्त- सचित्त पर रक्खा हुआ आहार लेना ।
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