________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
बोल संग्रह न हो तो उस सभा में गुरुदेव-कथित धर्मकथा का ही अन्य व्याख्यान करना और कहना कि 'इसके ये भाव और होते हैं ।'
(३० ) गुरुवदेव के शय्या-संस्तारक को पैर से छूकर क्षमा माँगे विना ही चले जाना।
(३१) गुरुदेव के शय्या-संस्तारक पर खड़े होना, बैठना, और सोना।
(३२) गुरुदेव के अासन से ऊँचे आसन पर खड़े होना, बैठना और सोना ।
(३३) गुरुदेव के आसन के बराबर ग्रासन पर खड़े होना, बैठना और सोना ।
ये अाशातनाएँ हरिभद्रीय आवश्यक के प्रतिक्रमणाध्ययन के अनुसार दी हैं । समवायांग और दशाश्रुतस्कन्ध सूत्र में भी कुछ क्रमभंग के सिवा ये ही अाशातनाएँ हैं ।
( १७ ) गोचरी के ४७ दोष
गवेषणा के १६ उद्गम दोष आहाकम्भुइसिय पूईकम्मे य मीसजाए य । व्वणा पाहुडियाए पाओयर कीय पामिच्चे ।। १ ।। परियट्टिए अभिहडे उभिन्न मालोहडे इय।
अच्छिज्जे अणिसिटू अझोयरए य सोलसमे ॥ २ ॥ (१) आधाकर्म-साधु का उद्देश्य रखकर बनाना । (२) औद्देशिक-सामान्य याचकों का उद्देश्य रखकर बनाना । (३) पूतिकम-शुद्ध आहार को अाधाकर्मादि से मिश्रित करना । (४) मिश्रजात-अपने और साधु के लिए एक साथ बनाना । (५)स्थापन-साधु के लिए दुग्ध आदि अलग रख देना ।
For Private And Personal