Book Title: Shraman Sutra
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 712
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बोल-संग्रह ४११ ( २ ) सम्मर्दा - जिस प्रतिलेखना में वस्त्र के कोने मुड़े ही रहें अर्थात् उसकी सलवट न निकाली जाय, वह सम्मर्दा प्रतिलेखना है । अथवा प्रतिलेखना के उपकरणों पर बैठकर प्रतिलेखना करना, सम्मर्दा प्रतिलेखना है । (३) मोसली - जैसे धान्य कूटते समय मूसल ऊपर, नीचे और तिरछे लगता है, उसी प्रकार प्रतिलेखना करते समय वस्त्र को ऊपर, नीचे अथवा तिरछा लगाना, मोसली प्रतिलेखना है । ( ४ ) प्रस्फोटना - जिस प्रकार धूल से भरा हुआ वस्त्र जोर से भड़काया जाता है, उसी प्रकार प्रतिलेखना के वस्त्र को जोर से झड़काना, प्रस्फोटना प्रतिलेखना है । (५) विक्षिप्ता - प्रतिलेखना किए हुए वस्त्रों को विना प्रति' लेखना किए हुए वस्त्रों में मिला देना, विक्षिप्ता प्रतिलेखना है । अथवा प्रतिलेखना करते हुए वस्त्र के पल्ले आदि को इधर-उधर फेंकते रहना विक्षिप्ता प्रतिलेखना है । (६) वेदिका - प्रतिलेखना करते समय घुटनों के ऊपर, नीचे या पसवाड़े हाथ रखना, अथवा दोनों घुटनों या एक घुटने को भुजाओं के बीच रखना, वेदिका प्रतिलेखना है । [ ठाणांग सूत्र ] ( ४ ) आहार करने के छह कारण ( १ ) वेदना - क्षुधा वेदना की शान्ति के लिए । ( २ ) वैयावृत्य - सेवा करने के लिए । ( ३ ) ईर्यापथ - मार्ग में गमनागमन आदि की शुद्ध प्रवृत्ति के लिए । ( ४ ) संयम - संयम की रक्षा के लिए । (५) प्राणप्रत्ययार्थ - प्राणों की रक्षा के लिए । (६) धर्म चिन्ता - शास्त्राध्ययन आदि धर्मं चिन्तन के लिए | [ उत्तराध्ययन २६ वाँ अध्ययन ] For Private And Personal

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