Book Title: Shraman Sutra
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 724
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir बोल-संग्रह ४२३ दिनों में चन्द्र-प्रभा से ग्रावृत होने के कारण सन्ध्या का बीतना मालूम नहीं होता । अतः तीनों दिनों में रात्रि के प्रथम प्रहर में स्वाध्याय करना मना है (७) यक्षादीप्त-कभी किसी दिशा-विशेष में बिजली सरीखा, बीचबीच में ठहर कर, जो प्रकाश दिखाई देता है उसे यक्षादीप्त कहते हैं । यक्षादीप्त होने पर एक प्रहर तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (८) धूमिका-कार्तिक से लेकर माघ मास तक का समय मेघों का गर्भमास कहा जाता है। इस काल में जो धूम्र वर्ण की सूक्ष्म जल रूप धू वर पड़ती है, वह धूमिका कहलाती है । यह धूमिका कभी कभी अन्य मासों में भी पड़ा करती है। धूमिका गिरने के साथ ही सभी को जल-क्लिन कर देती है। अतः यह जब तक गिरती रहे, तब तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए । (६) महिका-शीत काल में जो श्वेत वर्ण की सूक्ष्म जलरूप यूँ चर पड़ती है, वह महिका है । यह भी जब तक गिरती रहे, तब तक अस्वाध्याय रहता है। ..(१०) रजउद्घात-वायु के कारण अाकाश में जो चारों ओर धूल छा जाती है, उसे रजउद्घात कहते हैं। रज उद्घात जब तक रहे, तब तक स्वाध्याय न करना चाहिए। ये दश अाकाश सम्बन्धी अस्वाध्याय हैं । (११-१३) अस्थि, मांस और रक्त--पञ्चेन्द्रिय तियञ्च के अस्थि, मांस और रक्त यदि साठ हाथ के अन्दर हों तो संभवकाल से तीन प्रहर तक स्वाध्याय करना मना है। यदि साठ हाथ के अन्दर बिल्ली वगैरह चूहे आदि को मार डालें तो एक दिन-रात अस्वाध्याय रहता है। . इसी प्रकार मनुष्य सम्बन्धी अस्थि, मांस और रक्त का अस्वाध्याय भी समझना चाहिए। अन्तर केवल इतना ही है कि-इनका अत्वाध्याय सौ हाथ तक तथा एक दिन-रात का होता है। स्त्रियों के For Private And Personal

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