Book Title: Shraman Sutra
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyanpith

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Page 715
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ४१४ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir श्रमण सूत्र ( ४ ) श्रतिजागरित - अधिक जागने से । (५) उच्चार निरोध—बड़ी नीति की बाधा रोकने से । (६) प्रस्रवणनिरोध - लघुनीति (पेशाब) रोकने से । (७) श्रतिगमन-मार्ग में अधिक चलने से । (८) प्रतिकूल भोजन - प्रकृति के प्रतिकूल भोजन करने से । ( १ ) इन्द्रियार्थविकोपन --- विषयासक्ति अधिक रखने से । ( १० ) समाचारी के दश प्रकार ( १ ) इच्छाकार - यदि आपकी इच्छा हो तो मैं अपना मुक कार्य करूँ, अथवा आप चाहें तो मैं आप का यह कार्य करूँ ? इस प्रकार पूछने को इच्छाकार कहते हैं । एक साधु दूसरे से किसी कार्य के लिए प्रार्थना करे अथवा दूसरा साधु स्वयं उस कार्य को करे तो उसमें इच्छाकार कहना श्रावश्यक है । इस से किसी भी कार्य में किसी भी प्रकार का बलाभियोग नहीं रहता । (२) मिथ्याकार - संयम का पालन करते हुए कोई विपरीत श्राचरण हो गया हो तो उस पाप के लिए पश्चात्ताप करता हुआ साधु 'मिच्छामि दुक्कडं' कहे, यह मिथ्याकार है । ( ३ ) तथाकार - गुरुदेव की ओर से किसी प्रकार की आज्ञा मिलने पर अथवा उपदेश देने पर तहत्ति ( जैसा आप कहते हैं वही ठीक है ) कहना, तथाकार है । ( ४ ) श्रवश्यिकी - आवश्यक कार्य के लिए उपाश्रय से बाहर जाते समय साधु को 'आवस्सिया' कहना चाहिए -- अर्थात् मैं आवश्यक कार्य के लिए बाहर जाता हूँ । (५) नैषेधिकी बाहर से वापिस श्राकर उपाश्रय में प्रवेश करते समय 'निसीहिया' कहना चाहिए । इसका अर्थ है- अब मुझे बाहर रहने का कोई काम नहीं रहा है । For Private And Personal

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