________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
शेष सूत्र
३५६ जब तक अरिहंत भगवान् को नमस्कार न कर लूँ,. अर्थात् 'नमो अरिहंताणं' न पढ़ लू, तब तक एक स्थान पर स्थिर रहकर, मौन रहकर, धर्म ध्यान में चित्त की एकाग्रता करके अपने शरीर को पापच्यापारों से बोसिराता हूँ = अलग करता हूँ।
चतुर्विशतिस्तव-सूत्र लोगस्स उज्जोयगरे,
धम्म-तिस्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं,
चउवीसं "पि केवली ॥१॥ उसभमजियं च वंदे,
संभवमभिणंदणं च सुमई च । 'पउमप्पहं सुपासं,
जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥ सुविहिं च पुष्पदंतं,
सीअल-सिज्जंस-वासुपुज्जच। "विमलमणंतं च जिणं,
धम्म संति च चंदामि ॥ ३॥ कुथु अरं च मल्लि,
वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च ।
For Private And Personal