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४०८,
श्रमण-सूत्र
भीम-भव-वन से निकाला बड़ी कोशिशों से,. - मोक्ष के विशुद्ध राजमार्ग पै चलाया है । संकट में धर्म-श्रद्धा ढीली ढाली होने पर,
समझा-बुझा के दृढ़ साहस बँधाया है । कटुता का नहीं लेश सुधा-सी सरस वाणी, ___ धर्म-प्रवचन नित्य प्रेम से सुनाया है । 'अमर' सभक्तिभावः बार-बार वन्दनार्थ,
धर्मगुरु-चरणों में मस्तक मुकाया है ॥
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