________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
४०६
श्रमण-सूत्र
जन्म-जरा-मरण के चक्र से पृथक् भये,
पूर्ण सत्य चिदानन्द शुद्ध रूप पाया है। मनसा अचिन्त्य तथा वचसा अवाच्य सदा,
क्षायक-स्वभाव में निजातमा रमाया है । संकल्प-विकल्प - शून्य निरंजन निराकार, .
माया का प्रपंच जड़मूल से नशाया है । 'अमर' सभक्तिभाव बार - बार चन्दनाथ, पूज्य सिद्ध - चरणों में मस्तक भुकाया है।
आचार्य-वन्दन नमोऽत्थुणं आयरियाणं, नाणदंसणचरित्तरयाणं, गच्छमेदिभूयाणं, सागरवरगंभीराणं, सयपरसमयणिच्छियाणं, देस-काल-दक्खाणं। आगमों के भिन्न-भिन्न रहस्यों के ज्ञाता ज्ञानी,
उग्रतम चारित्र का पथ अपनाया है । पक्षपातता से शून्य यथायोग्य न्यायकारी,
पतितों को शुद्ध कर धर्म में लगाया है। सूर्य-सा. प्रचण्ड तेज प्रतिरोधी जावें भैप, .. संघ में अखंड निज शासन चलाया है । 'अमर' सभक्तिभाव बार-बार वन्दनार्थ, गच्छाचार्य-चरणों में मस्तक भुकाया है ।।
उपाध्याय-वन्दन नमोऽत्थु उवज्झायाणं. अक्खयनाणसायराणं, धम्मसुत्तवायगाणं, जिणधम्मसम्माणसंरक्खणदक्खाणं, नयापमाणनिउणाणं, मिच्छत्तंधयारदिवायराणं ।
For Private And Personal