Book Title: Shraman Sutra
Author(s): Amarchand Maharaj
Publisher: Sanmati Gyanpith

View full book text
Previous | Next

Page 708
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir परमेष्ठि-वन्दन मन्द-बुद्धि शिष्यों को भी विद्या का अभ्यास करा, दिग्गज सिद्धान्तवादी पंडित बनाया है। पाखंडीजनों का गर्व खर्व कर जगत् में, . अनेकान्तता का जय-केतु फहराया है। शंका-समाधान-द्वारा भविकों को बोध दे के, देश - परदेश ज्ञान - भानु चमकाया है। 'अमर' सभक्तिभाव बार-बार वन्दनार्थ, ... उपाध्याय - चरणों में मस्तक मुकाया है। साधु-वन्दन नमोऽत्धुणं सब्बसाहूणं, अक्खलियसीलाणं, सव्वालंबणविप्पमुक्काणं, समसत्तुमित्तपक्खाणं, कलिमलमुक्काणं, उझियविसयकसायाणं, भावियजिणवयणमणाणं, तेल्लोक्कसुहावहाणं, पंचमहव्वयधराएं। शत्र और मित्र तथा मान और अपमान, सुख और दुःख द्वैत-चिन्तन हटाया है। मैत्री और करुणा समान सब प्राणियों पै, क्रोधादि-कषाय-दावानल भी बुझाया है । ज्ञान एवं क्रिया के समान दृढ़ उपासक, __ भीषण समर कर्म-चमू से मचाया है । 'अमर' सभक्तिभाव बार-बार वन्दनार्थ, त्यागी-मुनि-चरणों में मस्तक मुकाया है। ___ धर्मगुरु-वन्दन नमोऽत्थुणं धम्मायरियाणं, धम्मदेसगाणं, संसारसागरतारगाणं, असंकिलिटायारचरित्ता, सव्वसत्तागुग्गहपरायणाणं, उपग्गहकुसणं । For Private And Personal

Loading...

Page Navigation
1 ... 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750